आप पेट्रोल पर 147 प्रतिशत टैक्स और डीज़ल पर 113 प्रतिशत टैक्स दे रहे हैं। यह त्याग आप इसलिए कर रहे हैं ताकि आप तेज़ी से हर दिन कुछ न कुछ विपन्न हो सकें और भारत के अमीर लोग संपन्न हो सकें।
अमीरों को संपन्न देखकर ही आप विकास की कल्पना करते हैं और फिर उनके विकास के लिए अपनी जेब से पैसे भरते हैं। 110 रुपये लीटर पेट्रोल भराते हैं।
आप टैक्स पर टैक्स दिए जा रहे हैं दूसरी तरफ़ अमीर लोग टैक्स पर टैक्स बचाए जा रहे हैं। वो टैक्स बचा सकें इसलिए सितंबर 2019 में सरकार ने कोरपोरेट टैक्स 5 परसेंट कम कर दिया।
हिसाब कीजिए पेट्रोल और डीज़ल पर कितना प्रतिशत टैक्स बढ़ गया। आप जनता की एक ख़ूबी है। आप अपनी जेब से पैसे देकर मोदी मोदी करते हैं। कारपोरेट आपकी जेब से पैसे लेकर मोदी मोदी करता है। कैसे? आइये समझें।
सितंबर 2019 में जब कोरपोरेट टैक्स कम हुआ तब उसके बाद से कारपोरेट टैक्स से सरकार को आय कम होने लगी। विवेक कॉल ने लिखा है कि 12 साल में पहली बार हुआ है जब इनकम टैक्स की तुलना में कोरपोरेट टैक्स कम आया है।
पहले सरकार को कारपोरेट टैक्स से ज़्यादा आय होती थी। इस बीच कोरोना का लाभ उठा कर कोरपोरेट ने सैलरी कम कर दी। लोगों को निकाल दिया। इससे भी उनका पैसा बचा और उनका मुनाफ़ा काफ़ी बढ़ गया जिसके कारण शेयर बाज़ार में उछाल आया है जिसे आप विकास समझते हैं।
पर ऐसा नहीं है कि कोरपोरेट इतने से ही खुश हो गया। उसे और चाहिए। जब तक आप अपना नंगे होने की हालत में नहीं आ जाएँगे, आपकी जेब से वसूली का यह सिलसिला जारी रहेगा।
हाल के दिनों में सरकार ने कोरपोरेट को कई हज़ार करोड़ के पैकेज दिए हैं ताकि वे जो उत्पाद बना रहे हैं उसे निर्यात की प्रतिस्पर्धा में लाया जा सके। इसके लिए वे टेक्नालाजी ला सके।
अब इसके बाद भी अमीर लोग टैक्स बचाने के लिए भारत से बाहर पैसे लगा रहे हैं। तरह तरह की काग़ज़ी कंपनियाँ बना कर उसमें पैसा रखते हैं और टैक्स से बचते हैं। तभी तो वे हर बात में मोदी मोदी करते हैं।
उनकी नैतिकता आप समझिए। वैसे मोदी मोदी आप भी करते हैं लेकिन आप अपनी जेब से पैसे देकर करते हैं और अमीर लोग अपना पैसा बचने की गारंटी के बाद मोदी मोदी करते हैं। उनकी तारीफ़ सुनकर आप कहते हैं कि हाँ विकास हो रिया है।
आज दुनिया के कई अख़बारों में बड़ा पर्दाफ़ाश हुआ है। दुनिया के सैंकड़ों अख़बारों और पत्रकारों ने मिलकर उस नेटवर्क का राज़ बाहर ला दिया है जिसके तहत अमीर लोग और अमीर होते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में भी यह पड़ताल छपी है।
पिछली बार पनामा पेपर्स में भी कई लोगों के नाम आए थे लेकिन कुछ हुआ नहीं। इस बार पेंडोरा पेपर्स के तहत कई लोगों के नाम आए हैं और आगे भी आएँगे। इस बार भी कुछ नहीं होगा।
याद है आपको जब आप अपने टैक्स का हिसाब माँग रहे थे और जे एन यूँ बंद करने की माँग कर रहे थे? आपको लगा कि टैक्स राष्ट्रवाद आ गया है। अब टैक्स का ईमानदार हिसाब होगा। ऐंकर चिल्लाने लगा था। आप चिल्लाने लगे थे।
लेकिन इतने अमीर लोगों को टैक्स चोरी करते देख कर क्या आप चिल्लाना पसंद करेंगे या आप बेवकूफ बन गए हैं यह सोच कर लजाना पसंद करेंगे?
29,000 काग़ज़ी कंपनियाँ बनी हैं। जिनके ज़रिए अमीर अपने टैक्स का पैसा बचाते हैं। यहाँ से निकाल कर वहाँ लगाते हैं। लेकिन आपके पास तो एक ही कंपनी है और वो है आपकी जेब।
आप उसमें जितना डालते हैं सरकार वहाँ से निकालकर कारपोरेट में लगा देती है। इस तरह आप विकास के नाम पर विकास नहीं कर पाते हैं। हंसी आई आपको?
आप कितने समझदार हैं न? यह जाल काफ़ी बड़ा हो चुका है। आप ज़्यादा से ज़्यादा यही करेंगे कि दो नेताओं का नाम चुन कर राजनीति करेंगे लेकिन यह नहीं देख पाएँगे कि यह सिस्टम कैसे जारी है।
आख़िर जिसका परिवार नहीं है, जो अपने लिए नहीं कमाएगा, वह दूसरों के कमाने के लिए इतनी मेहरबानी क्यों कर रहा है, वह भी टैक्स की चोरी से? क्योंकि जब मोदी मोदी होगा तो उन्हें आप सत्ता देंगे। आप ईमानदार समझेंगे।
अब एक खेल और। टैक्स चुराने वाले इन अमीरों को दिक़्क़त न हो इसके लिए आप 110 रुपया लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं कोई बात नहीं। जब ये कारपोरेट अमीर होते हैं तो राजनीतिक दल को चंदा देते हैं।
जनता चंदा देने वाले का नाम न जान सके इसके लिए सरकार संसद में क़ानून लाती है। इस तरह से बीजेपी के फंड में तीन हज़ार करोड़ से अधिक का चंदा आ जाता है।
आप नहीं समझें न। सोचिए तीन हज़ार करोड़ की पार्टी है। इसके कार्यकर्ता जब मर जाते हैं, किसी दुर्घटना में, महामारी से या जैसे लखीमपुरी खीरी में तब उन कार्यकर्ताओं को पार्टी फंड से पाँच रुपया नहीं दिया जाता है।
0कार्यकर्ता भी आपकी तरह है। वह अपनी पार्टी को अमीर बनाने के लिए काम कर रहा है जैसे आप अमीरों को अमीर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। मल्लब 110 रुपए लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं।
बाक़ी आप समझदार हैं, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। धर्म के नाम पर भावनात्मक सुरक्षा तो मिल ही रही है न। पहले धर्म के नाम पर नदी में पैसे प्रवाहित कर देते थे और अब धर्म के नाम पर सरकार के ख़ज़ाने में पैसे प्रवाहित कर दे रहे हैं ताकि वह प्रवाहित पैसा कारपोरेट के ख़ज़ाने में चला जाए।
इस तरह आप आर्थिक रुप से असुरक्षित होते हैं लेकिन सरकार भावनात्मक सुरक्षा दे देती है। मैं कह रहा हूँ कि अगर सरकार आपकी बचत हड़प ले और नेहरू मुसलमान है वाला मीम का पोस्टर घर के सामने लगा दे तो आप ज़्यादा ख़ुश रहेंगे।
क्योंकि आप हिन्दी प्रदेश हैं। समझदार हैं।
रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार