BY- RAHUL KUMAR GAURAV
प्रियांशु कहते हैं कि यूपी की राजनीति को करीब से देखिए। कांग्रेस सवर्ण वोटरों के जनाधार के बल पर उत्तर प्रदेश में पनपा था। 1970-90 के दशक में त्रिभुवन नारायण सिंह, कमलापति त्रिपाठी, नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, श्रीपति मिश्र, वीपी सिंह जैसे नेताओं को कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। तब संगठन के बड़े पदों पर ब्राह्मणों और ठाकुरों का बोलबाला हुआ करता था।
मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद पूरे देश की ही स्थिति बदली तो आंदोलन से निकलने वाले लोगो ने दलित-पिछड़ों के प्रतिनिधित्व के लिए पार्टी बना ली। अयोध्या मन्दिर आंदोलन और हिंदुत्व की राजनीति ने सवर्णों के जनाधार को कांग्रेस से भाजपा में शिफ्ट करा दिया। चुनाव दर चुनाव एक तरफ कांग्रेस कमजोर होती गई, वहीं भाजपा मज़बूत होती गई और छोटे-छोटे दल सपा-बसपा सत्ता के केंद्र में आ गई।
आज के दशक में कांग्रेस के पास कुछ परंपरागत सीटें बची, कुछ नेता बचे जिन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का लोभ नहीं था, कुछ विधायक बचे जिनके लिए मंत्री बनने से ज्यादा फक्र कांग्रेसी विधायक होने में था, कुछ लोग बचे जिनके रगो में मौकापरस्ती नहीं थी, जिन्होंने राजीव गांधी और इन्दिरा गांधी के बाद सोनिया गांधी को चुना, राहुल को चुना और अब प्रियंका पर भरोसा कर रहे है।
22 में कांग्रेस को खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। मजलूम परिवारों और महिलाओं को सत्ता में भागीदारी की एक मजबूत पहल है, नफरत और सांप्रदायिकता के खिलाफ राहुल का माकूल स्टैंड है, लाखों कार्यकर्ताओं का संघर्ष है, सत्ता के प्रयोग के लिए कुछ मज़बूत सीटें है, योगी के ठाकुरवाद से ठिठके गैर-ठाकुर सवर्णों की जमात है और एक भरोसा है जिसे प्रियंका गांधी ने जिन्दा किया है।
एक बात जो महत्त्वपूर्ण है। कांग्रेस मजबूत होगी तभी भाजपा के पाखंड से आज़ादी मिलेगी। भाजपा-आरएसएस को पूरे भारत से केवल कांग्रेस ही खदेड़ सकती है, भारत का सुनहरा भविष्य कांग्रेस ही संवार सकती है, क्षेत्रीय दलों का हांथ मिला लेने का इतिहास रहा है।
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