यूपी चुनाव 2022: बसपा की हार के क्या कारण रहे और क्या बदलाव करके खड़ा किया जाए?

BY- Dr RAVINDRA GAUTAM

एक महीने से चल रहे उत्तर प्रदेश में चुनाव पर अब अंतिम विराम लग चुका है और एक बार फिरसे भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आई है।

इस बार के चुनाव में सभी प्रमुख पार्टियों ने जमकर संघर्ष किया लेकिन आखिर में भाजपा के आगे उन्हें हर का मुंह देखना पड़ा। उत्तर प्रदेश में 4 बार सरकार बनाने वाकई बहुजन समाज पार्टी को इस बार के विधानसभा चुनाव में मात्र 1 सीट मिली है जिससे लोग कयास लगा रहे हैं कि दलित राजनीति का ये अंतिम पड़ाव है।

बसपा की यूपी चुनाव 2022 में असफलता के कुछ प्रमुख बिंदु: एक अवलोकन।

1. बहन जी का मुस्लिम प्रेम बसपा को ले डूबा।
2. युवा वर्ग की आवाज को बसपा में कोई खास तवज्जो नहीं मिलना।
3. सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय नारा बहुजनो के लिए फिट नहीं है।
4. ब्राह्मण चेहरा सतीश चन्द्र मिश्रा को आगे करके चुनाव लड़ना। बहुजनों में गलत संदेश गया कि अब मायावती जी किसी दूसरे दलित नेता को आगे नहीं आने देना चाहती हैं।
5. पार्टी के लिए जो पुराने कार्यकर्ता काम कर रहे है उनकी जगह पर बाहर आए नए चेहरों को टिकट देना।
6. सपा लोगों को यह समझाने में सफल रही कि चुनाव बाद बसपा भाजपा को सपोर्ट कर देगी।
7. मुस्लिमों का सपा को एकतरफा वोट करना। भाजपा दलितों और अति पिछड़ों को यह समझाने में सफल रही कि यदि सपा की सरकार बनी तो यादव – मुस्लिम मिलकर दलितों और अति पिछड़ों पर अत्याचार करेंगे।
8. मायावती जी का चुनाव प्रचार में बहुत देर से आना और मंडल स्तर पर रैली करना। भीड़ तो जुटी लेकिन मंडल स्तर की रैली में इतनी भीड़ का कोई मतलब नहीं।
9. भाजपा की मुफ्त अनाज –तेल– नमक – चना योजना का सीधा लाभ दलितों और अति पिछड़ों को हुआ। यदि कोई बुद्धजीवी इससे इनकार करता है तो मेरी समझ में वो गलती करता है क्योंकि कोरोना काल में हुई परेशानी और मौतों को लोग भूल गए पर पेट की आग को शांत करने के लिए जो अनाज मिला लोग उसे याद रखे।
10. बसपा के नेताओं ने बूथ स्तर तक संपर्क नहीं किया। बूथ तो दूर कि बात हो गई, विधान सभा क्षेत्र पर भी यूनिटी नहीं दिखी।
11. जरूरत से ज्यादा मुस्लिमों को टिकट देना। कई जगह बहुसंख्यक इलाको में भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट दिया गया। इसका मैं कतई समर्थन नहीं करता।
12. आरक्षित सीटों पर ओवर कॉन्फिडेंस के साथ चुनाव लड़ना।
13. बसपा में स्टार प्रचारक मायावती जी को छोड़ कर कोई नहीं हैं। स्टार प्रचारको की कमी।
14. बीएसपी आईटी सेल का न होना। इसका बहुत प्रभाव पड़ा। बीएसपी अपनी पुरानी योजनाओं को ही जनता के बीच नहीं बता पाई।
15. बसपा अपने ओबीसी नेताओं को समय रहते नहीं संभाल पाईं। एक के बाद एक पार्टी छोड़ कर चले गए या तो निकाल दिए गए।

बसपा के कोर वोट भी पार्टी के हाथ से निकल रहे हैं। इस बार बसपा को कुल 12.65% वोट मिले हैं। समय को देखते हुए पार्टी को पुनः विचार करने की आवश्यकता है।

बीएसपी को पुनः खड़ा कैसे किया जाय एक अवलोकन –

1. प्रबुद्ध सम्मेलन 75 जिले में किया किया गया। कल्पना मिश्रा का सम्मेलन 75 जिलों में लगाया गया। मंच पर शंखनाद और मंत्रोच्चार किया गया। बीएसपी का कोर वोटर इसके वजह से खिसक गया।
लगभग 3 से 4 प्रतिशत कोर वोटर टूट गया।
2. बीजेपी यह दुष्प्रचार करने में सफल हो गई कि बहन जी को काफी सहयोग पार्टी को मिल रहा है। इस कारण कोर वोटर में सेंध लग गई।
3. सपा यह दुष्प्रचार करने में सफल हो गई कि यदि बीएसपी को वोट करेंगे तो बहन जी बीजेपी से मिल जाएंगी,और आप लोगो पर फिर से अत्याचार होगा।
4. बूथ स्तर, सेक्टर, विधानसभा,जिला स्तर, प्रदेश स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर भाईचारा कमेटी को गंभीरता पूर्वक लगाया जाय।
5-विधानसभा, जिला और मंडल स्तर पर कॉर्डिनेटर की लंबी लिस्ट को खत्म किया जाय क्योकि जिलाध्यक्ष केवल इनके आवभगत में ही व्यस्त रहता है। इस चुनाव में कोई कॉर्डिनेटर व्यक्तिगत रूप से प्रत्याशी के लिए अपने कोर वोटरों के लिए भी कोई सम्मेलन या मीटिंग नही किया।
6. विधानसभा अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष से सीधे संवाद पार्टी मुखिया से होनी चाहिए या निर्णयकर्ता से होनी चाहिए।
7-संगठन 5 साल तक सक्रिय रहे इसके लिए बिना ताम-झाम के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई जाय जिससे कोर वोटर फिर से जुड़ सके।

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