BY – FIRE TIMES TEAM
किसान आंदोलन के चलते हरियाणा सरकार भी मुश्किल में है। किसान आंदोलन के बीच सरकार की सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नेता दुष्यंत चौटाला कई बार कह चुके हैं कि अगर किसानों की बात न मानी गई तो वे कुर्सी छोड़ने पर विचार कर सकते हैं।
कृषि कानूनों पर सरकार और किसानों के बीच ठनी हुई है। इसी बीच शनिवार को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने नई दिल्ली में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की।
अभी तक वे डिप्टी सीएम के पर बने हुए हैं, जबकि केन्द्र सरकार ने कृषि कानूनों को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
वहीं कृषि कानूनों (Farm Law) को लेकर सरकार से आर-पार की लड़ाई का मूड बना चुके किसान अपने आंदोलन (Kisan Andolan) को तब तक खत्म करने को तैयार नहीं हैं, जब तक कानून को वापस नहीं लिया जाता।
सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) पर हजारों की संख्या पर डटे किसान हरियाणा (Haryana) में बीजेपी सरकार में सहयोगी जेजेपी के प्रमुख एवं उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) से खासे नाराज़ हैं। उनका कहना है कि दुष्यंत चौटाला सत्ता के मोह से बंधे हुए हैं।उन्हें तो पहले ही दिन डिप्टी सीएम पद से रिजाइन कर किसानों से जुड़ जाना चाहिए था।
भारतीय किसान मंच के राज्य प्रमुख किसान नेता बूटा सिंह शादीपुर ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि ‘दुष्यंत चौटाला कुर्सी से चिपके हुए हैं। अगर वह समझदार होते तो उन्हें पहले ही दिन पद से रिजाइन कर किसानों से जुड़ जाना चाहिए था।
उनके पास डिप्टी सीएम का पद है। अगर वो आज भी डिप्टी सीएम पद से रिजाइन कर किसानों के इस आंदोलन के साथ खड़े हो जाएं तो हम उनके साथ आ जाएंगे और वो मुख्यमंत्री बन सकते हैं’।
बूटा सिंह शादीपुर ने कहा कि ‘अगर दुष्यंत चौटाला रिजाइन कर दें तो खट्टर सरकार डिगेगी और मोदी सरकार को इस कानून को वापस लेने को मजबूर होना ही पड़ेगा’।
मोदी सरकार द्वारा किसानों की बात न माने जाने के सवाल को लेकर दुष्यंत चौटाला द्वारा उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कहे जाने को लेकर किसान नेता बूटा सिंह ने कहा कि ये तो उन्हें (दुष्यंत चौटाला) पता होना चाहिए कि सरकार कब मानेगी या नहीं मानेगी।
सारे लोग सड़कों पर आ गए अब चौटाला साहब क्या देखना चाहते हैं। ये तो उन्हें देखना चाहिए ना कि इतनी बड़ी संख्या में जो लोग इस कानून के खिलाफ खड़े हुए हैं तो वे गलत तो नहीं हो सकते।
उनका यह बयान देना वाजिब नहीं है। उन्हें तो यह कहना चाहिए था कि मैं किसानों के साथ हूं। सरकार आपकी बात मानें या ना मानें मैं आपके साथ खड़ा हूं।