कोरोना संकट के बाद देशव्यापी लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी तबाह कर दी। कई लोगों ने आत्महत्या कर ली तो कई ऐसे काम करने पर मजबूर हैं जो शायद उन्होंने कभी सोचा न हो।
मध्य प्रदेश से एक ऐसी खबर आई है जिसको सुनकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। यहां खरगोन जिले में एक युवा इंजीनियर मनरेगा के तहत दिहाड़ी का काम करने को मजबूर है।
युवा सिविल इंजीनियर है लेकिन काम न मिलने के कारण वह दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है। युवा इंजीनियर का सपना डिप्टी कलेक्टर बनने का है लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवार के चलते वह मजदूरी करने को विवश हुआ है।
अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार युवा इंजीनियर का नाम सचिन यादव(24) है। जिसने 2018-19 में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। स्नातक के बाद वह इंदौर में रहकर मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
लॉकडाउन लगने के कुछ दिन बाद वह किसी प्रकार से गांव लौटा। उसने गांव में पैसे की तंगी के बीच मनरेगा में काम करना शुरू किया। सचिन ने बताया कि वह मजदूरी के साथ अभी भी मध्य प्रदेश लोक सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा है।
सचिन को एक दिन में 190 रुपये मिलते हैं जिसके लिए वह 8 घंटे काम करता है। सचिन के अलावा गांव के और भी ऐसे युवा हैं जो स्नातक तक कि पढ़ाई किये हैं लेकिन वह भी मजदूरी करने पर विवश हैं।
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बेरोजगारी पर बात की जाए तो भारत इस मामले में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। पिछले 46 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी मोदी सरकार में देखने को मिली है। एक तरफ सरकार करोड़ों नौकरियां देने की बात कहती है दूसरी ओर आंकड़ा कुछ और कहता है।
निजीकरण को बढ़ावा देने के कारण सरकारी नौकरियों की भी उम्मीद नहीं बची है। मेक इन इंडिया 2014 में चलाया गया था लेकिन उसका लाभ भी नहीं मिल पाया। लोग जो नौकरी कर भी रहे थे वह भी बेरोजगार हो गए हैं।