Big que seen out side the government ration shops on the first day of the month in Lucknow on wednesday,during lockdown today is the first day of Ration distribution.Express photo by Vishal Srivastav 01042020

विकराल होती प्रवासी मज़दूरों की समस्या, सरकार आंकड़ा तक नहीं जुटा सकी है?


BY- राजीव यादव


  • बाराबंकी में क्वारेन्टाइन में बुजुर्ग की मौत के लिए सरकारी अमला जिम्मेदार
  • बागपत में कोरोना मरीज के नाम पर मुस्लिम व्यक्तियों के पोस्टर लगाने पर रिहाई मंच ने उठाया सवाल

लखनऊ/आज़मगढ़ 13 अप्रैल 2020: रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने बाराबंकी में क्वारेन्टाइन में बुजुर्ग की मौत पर सवाल उठाते हुए सरकारी अमले को जिम्मेदार ठहराया।

कहा कि पिछले दिनों लखीमपुर खीरी में भी पुलिस प्रताड़ना से एक दलित मजदूर ने आत्म हत्या कर ली थी वहीं भदोही में एक महिला ने अपने बच्चों को नदी में फेंक दिया था। यह सब घटनाएं सरकार की विफलताओं पर सवाल उठाती हैं।

मंच नेता ने बागपत में कोरोना मरीज के नाम पर मुस्लिम व्यक्तियों के पोस्टर लगाने पर आरोप लगाया कि सरकार ऐसा कर जहां उनकी निजता का हनन कर रही वहीं यह मॉब लिंचिंग को बढ़ावा देगा।

लॉकडाऊन की अवधि बढ़ने की खबरों के बीच प्रवासी मज़दूरों और गरीब वंचित जनता में बेचैनी देखी जा सकती है। जो मज़दूर दूसरे प्रान्तों में फंसे हुए हैं वह किसी भी तरह अपने घर पहुंचना चाहते हैं। उनके पास काम नहीं है, आय का कोई साधन नहीं है। प्रवासी होने के कारण सरकारी राशन नहीं मिल पा रहा है।

भुखमरी का शिकार मज़दूरों को इस बात का डर है कि आज तक जो थोड़ी बहुत सहायता दूसरों से मिल जाया करती थी वह बनी रह पाएगी या नहीं।

कोरोना महामारी के साम्प्रदायीकरण के कारण जरूरतमंदों तक मदद पहुंचा रहे मुस्लिमों के लिए मदद पहुंचाना आसान न होगा। यह सवाल भी अपनी जगह वाजिब है कि किसी व्यक्ति या संस्था की अपनी सीमा होती है।

राशन की कमी और आय स्रोत बंद होने के कारण आत्महत्याओं की खबरें भी हैं। प्रवासी मज़दूर अपना धैर्य खो रहे हैं, पुलिस से भिड़ंत की भी खबरें हैं। दिल्ली में शेलटर होम में आगज़नी तक हुई है।

सरकार के पास विभिन्न राज्यों के अलग-अलग प्रान्तों में फंसे मज़दूरों का आंकड़ा तक नहीं है। सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा बनाए गए अस्थाई कैंपों में करीब 14.3 लाख मज़दूर हैं।

लेकिन इन कैंपों के बाहर रहने वाले मज़दूरों का कोई आंकड़ा नहीं है। उनकी संख्या भी बहुत बड़ी है लेकिन सही अनुमान लगा पाना संभव नहीं है।

अगर सरकारें इस पर ध्यान नहीं देंगी तो आगे बहुत बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। बड़े पैमाने पर आत्महत्याओं का खतरा तो है ही, कानून व्यवस्था का मसला भी पैदा हो सकता है। समय रहते उससे निपटना पड़ेगा। तब्लीगी मरकज़ या दाढ़ी वाले तब्लीगी बहुत दिनों तक काम नहीं आएंगे।

राजीव यादव(रिहाई मंच)


 

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