आपको याद होगा कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के पालघर में भीड़ ने साधुओं की हत्या कर दी थी। उस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। जबकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सफाई देते रहे कि घटना का हिन्दू-मुस्लिम से कोई लेना देना नहीं है।
उद्धव ठाकरे ने त्वरित कार्यवाही करते हुए एक टीम को लगाया जिसने कई गिरफ्तारियां की। साथ ही यह भी कहा कि जो लोग भी इस घटना में शामिल होंगे उनको छोड़ेंगे नहीं। बावजूद इसके गोदी मीडिया न केवल उद्धव ठाकरे पर सवाल करती रही बल्कि वह सोनिया गांधी को भी इस मुद्दे में खींच लाई।
पत्रकार अर्णब गोस्वामी ने तो यहां तक कह दिया कि सोनिया गांधी ने साधुओं की हत्या करवाई है। वह बहुत खुश हुईं हैं और रिपोर्ट इटली भेजेंगी। इस प्रकार की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल जमकर किया गया। इसमें सिर्फ एक चैनल नहीं बल्कि लगभग पूरी गोदी मीडिया कूद पड़ी थी।
अब उत्तर प्रदेश में 8 पुलिसकर्मियों को एक माफिया ने मार दिया। उसके ऊपर पहले से 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। पुलिसकर्मियों की हत्या में उसने एके47 जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया। घटना के एक हफ्ते बाद भी पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही है।
अब कोई पत्रकार न तो उस प्रकार से टीवी डिबेट कर रहा है और न ही उत्तर प्रदेश सरकार में कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह ही लगा रहा है। इटली तक पहुंचने वाले अर्नब मौन धारण किये हुए हैं। उनकी हिम्मत उत्तर प्रदेश तक आने की नहीं हो रही है।
ये पत्रकार न तो योगी आदित्यनाथ से सवाल ही कर पा रहे हैं और न ही कानून व्यवस्था पर। यह किस प्रकार की पत्रकारिता की परिभाषा गढ़ रहे हैं शायद वह स्वयं ही नहीं जान पा रहे हैं।
वर्तमान में वह सत्ता पक्ष की बजाए विपक्ष से ही सवाल करने लगे हैं। जब विपक्ष सत्ता में बैठे लोगों से सवाल करता है तो यह उन्हें देशद्रोही साबित कर देते हैं।