BY- FIRE TIMES TEAM
आरबीआई ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि उसने देश के 50 बड़े डिफॉल्टर्स का 68607 करोड़ रुपये माफ किया है। इसमें मेहुल चोकसी की भ्रस्टाचार में फंसी कंपनी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड शीर्ष पर है। इस कंपनी पर कुल 5492 करोड़ रुपये की देनदारी थी।
बाबा रामदेव और बालकृष्ण के समूह वाली कंपनी रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इंदौर का 2212 करोड़ और जूम डेवेल्पर्स प्रा. लिमिटेड, ग्वालियर का 2012 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाल दिया गया है।
जब यह जानकारी विभिन्न मीडिया समूहों ने छापी तो अचानक देश के लोगों ने सरकार से प्रश्न करना शुरू कर दिया। कोरोना के समय जब सरकार केंद्रीय कर्मचारियों का भत्ता काट रही है तब ऐसी जानकारी सार्वजनिक होना कहीं न कहीं लोगों को शंका में डाल रही है।
यदि हम इसकी तुलना स्वास्थ्य बजट से करें तो पाएंगे कि लगभग बराबर की रकम है। साल 2020 में कुल 67,484 रुपये का स्वास्थ्य बजट तय हुआ है। यह बजट पिछले साल की तुलना में 5.7% अधिक है।
साल 2019 में कुल 63,830 रुपये का प्रावधान किया गया था। इसकी तुलना में जिन 50 लोगों के कर्ज को बट्टे खाते में डाला गया वह ज्यादा है।
अब सवाल सरकार से भी है कि जब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी बेहाल है तब कुछ व्यापारियों के कर्ज को बट्टे खाते में डालने से क्या फायदा। क्या इस पैसे से हम देश की स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं ठीक कर सकते थे?
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस पैसे से लाखों किसानों को राहत दी जा सकती थी। हर साल हजारों किसान आत्महत्या करते हैं। इस पैसे से उनकी जान बचाई जा सकती थी।
देश के लाखों छात्र ऐसे हैं जो कर्ज लेकर पढ़ाई कर रहे हैं। क्या हम इस पैसे से उनके कर्ज को दूर नहीं कर सकते थे।
अभी भी लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। हर साल भुखमरी का लाखों लोग शिकार भी होते हैं। क्या हम इस पैसेसे उसको नहीं खत्म कर सकते थे?