दर्दनाक सफर: 48 घंटे के बदले 9 दिन में पहुंचा रही हैं श्रमिक ट्रेनें


BY- FIRE TIMES TEAM


कोरोना संकट ने प्रवास मजदूरों की जिंदगी तबाह कर दी है। अचानक हुए लॉकडाउन ने लाखों श्रमिकों को हज़ारों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर कर दिया। भूके, प्यासे पैदल चलने वाले मजदूरों में कई ने अपनी जान तक गंवा दी।

काफी आलोचना के बाद जब सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का निर्णय लिया तो उसमें भी कई खामियां नजर आईं। महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के लिए निकली एक ट्रेन उड़ीसा पहुंच गई। ऐसे ही दो ट्रेनें गुजरात के सूरत से बिहार के सीवान के लिए निकली थीं जो उड़ीसा और राउरकेला पहुंच गईं। जिस ट्रेन को 18 मई को सीवान में होना चाहिए था वह 25 मई को वहां पहुंची।

खबर है कि इस प्रकार से करीब 40 ट्रेनें अपना रास्ता भटक गईं। जो अपने गंतव्य स्थान पर न जाकर किसी दूसरे स्टेशन चली गईं। 40 ट्रेनों का अपने स्थान पर न पहुंच पाना अपने आप  में रेलवे की बड़ी लापरवाही है।

इसके दूसरी ओर रेल मंत्री ट्रेनों की बड़ी संख्या में चलाने की बात कह रहे हैं लेकिन वह न चलने के पीछे की वजह राज्यों की लापरवाही बता रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार पर उन्होंने आरोप लगाया है कि वह मजदूरों की लिस्ट नहीं दे पा रही है जिससे श्रमिक स्पेशल ट्रेन ज्यादा मात्रा में नहीं चल पा रही हैं।

सड़क दुर्घटनाओं, पटरियों के बाद लोग अब ट्रेनों में दम तोड़ने लगे हैं: श्रमिकों के लिए चलने वाली ट्रेनें न केवल रास्ता भटक रही हैं बल्कि लोग इनमें भूख, प्यास और गर्मी से भी बेहाल हैं। जिनमें मासूम से लेकर नौजवान व बुजुर्ग भी शामिल हैं।

इस भूख, प्यास से कई लोगों की जान भी जा चुकी है। देश के कई लोगों ने ईद के मौके पर दम तोड़ दिया जिससे उनके घर में मातम छा गया।

महाराष्ट्र से बिहार के गया को जाने वाले एक शख्स निसार खान की मौत आरा स्टेशन पर हो गई। बेहोशी की हालत में आरा स्टेशन पर पड़े निसार को लोगों ने उठाया तो वह मृत मिले।

चार वर्षीय इरशाद की कहानी बड़ी दुःख भरी है। उसके पिता मो. पिंटू दिल्ली से पटना के लिए चले थे। रास्ते में भूख, प्यास की वजह से उनके परिवार की हालत खराब हो गई। वह बिहारी के मुजफ्फरपुर पहुंच भी गए थे लेकिन वहां से जब वह बेतिया के लिए रवाना होने लगे तो उनके चार वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। पिंटू ने कहा, “उमस भरी गर्मी और अन्न दाना न होने के कारण अपने लाडले को खो दिया।”

 

 

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