कोविड-19: दुनिया भर के देशों के दबाव से क्या सबक लेगा चीन?


BY-हर्षिल जैन


चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस आज पूरी दुनिया में 2 लाख से ज़्यादा मौतों का कारण बन गया है। शुरुआती दौर में सिर्फ वुहान शहर तक सीमित इस वायरस ने अब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है।

एक तरफ सभी देश इस वायरस का इलाज ढूंढने में लगे हैं तो वहीं दूसरी तरफ चीन के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की बात भी ज़ोर पकड़ रही है। चीन से उसके करतूतों का जवाब मांगने के लिए अब कई देश कमर कस रहे हैं।

कोरोना से हुए 6.5 ट्रिलियन डॉलर के अनुमानित नुकसान के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराये जाने की मांग उठ रही है। इसके अतिरिक्त चीन को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के कठघरे में खड़ा करने की कवायद भी शुरू हो गई है।

अमेरिका, ऑस्टेलिया, जर्मनी और फ्रांस सहित अन्य देशों ने कोरोना वायरस से हुए आर्थिक नुकसान का ब्यौरा चीन को थमा दिया है। अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर चीन को उसकी गलती का एहसास करवाने के लिए पूरी दुनिया एकजुट हो गई है।

दुनियाभर में वैज्ञानिक यह दावा कर रहे हैं कि इस वायरस को चीन में ही किसी लैब में बनाकर तैयार किया गया है। इस बात की पुष्टि के लिए कई तर्क भी पेश किए गए हैं।

हालांकि चौकाने वाली बात यह है कि चीन इन बातों की अनसुनी कर रहा है। अपने लापरवाह और अड़ियल रवैये की वजह से चीन पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बन गया है।

कोरोना संक्रमण फैलने के शुरुआती दौर में महत्वपूर्ण जानकारियाँ और आंकड़े छुपाकर चीन लाखों लोगों की मौत का कारण बन गया है। अपनी गलती मानकर दुनिया से माफ़ी मांगने की बजाये चीन उसके करतूतों से पल्ला झाड़ रहा है। चीन के इस रवैये से संदेह और गहरा रहा है।

आज से पहले भी चीन ने कई गलत और भ्रामक तथ्यों को दुनिया के सामने पेश किया है जिसका खामियाज़ा पूरे विश्व को भुगतना पड़ा है। चीन अपनी साख़ बचाने के लिए ऐसी हरकतों का सहारा लेता है। हालांकि विश्व पटल पर चीन की मलिन छवि का कारण भी यही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को कड़े शब्दों में चेतावनी दे दी है। उन्होंने एक प्रेस वार्ता में कहा की यदि जांच करने पर इस बात की पुष्टि होती है कि कोरोना वायरस फैलाने में चीन का हाथ है तो वो (चीन) इसके दुष्परिणामों के लिए तैयार रहै।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता को भी ट्रंप ने सस्पेंड कर दिया है। उनके अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन का चीन-केंद्रित रुख इस फैसले का कारण है।

कोरोना को ‘चायनीज़ वायरस’ बोले जाने पर चीन पहले से ही तीखे रुख अपना रहा है। लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उनके कुछ अधिकारियों के द्वारा कोरोना को चायनीज़ वायरस कहकर संबोधित करना दोनों देशों में तनाव बढ़ा देगा।

अमेरिका के एक वक़ील, लैरी क्लेमन, ने चीन के खिलाफ़ 20 ट्रिलियन डॉलर का मुकदमा दायर कर दिया है। उनका मानना है की चीन ने जैविक-हथियार के रूप में कोरोना का इस्तेमाल किया है जबकि 1925 में जैविक-हथियारों के इस्तेमाल को गैरकानूनी करार दिया गया था। चौकाने वाली बात यह है कि 2019 में चीन की कुल जीडीपी 14.3 ट्रिलियन डॉलर थी।

ऐसा ही एक और मामला सामने आया है अमेरिका के मिसौरी राज्य से। मिसौरी के अटॉर्नी जनरल एरिक श्मिट द्वारा फ़ेडरल कोर्ट में चीन के खिलाफ़ मुकदमा दायर किया गया है। इसमे उन्होंने कोरोना से हुई मानवीय और आर्थिक क्षति के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराया है। चीन ने इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस केस को कोर्ट में मान्यता मिलने पर भी जानकारों द्वारा संदेह जताया जा रहा है।

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मरीस पाएन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र जांच की माँग की है। इस वायरस की उत्पत्ति कहा से हुई, चीन को इस बारे में कब जानकारी मिली,सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए क्या कदम उठाये और वायरस को लैब में तो नहीं बनाया गया जैसे कई सवालों के जवाब मांगे हैं। उनका कहना है कि इस पूरे मामले में चीन सरकार की पारदर्शिता भी संदेहजनक है।

ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को इससे काफी नुकसान हुआ है। बताया जा रहा है कि अब तक ऑस्ट्रेलिया ने 200 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च कर दिए है। चीन के साथ व्यापारिक सम्बंध बिगड़ने से ऑस्ट्रेलिया पर दीर्घावधिक प्रभाव पड़ेंगे। लेकिन इस संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया ने कोई चिंता नहीं जताई है।

जर्मनी के एक अखबार ने तो कोरोना से हुए नुकसान का बिल तैयार करके छाप दिया है। उसके अनुसार चीन पर जर्मनी का 149 बिलियन पाउंड बकाया है जो जर्मनी ने अब तक कोरोना से लड़ने पर खर्च किया है। इसमे 27 बिलियन का पर्यटन, 7.2 बिलियन का फ़िल्म इंडस्ट्री और 50 बिलियन का छोटे व्यापारियों को हुआ नुकसान शामिल है। हालांकि चीन ने इसे राष्ट्रवाद बढ़ाने और विदेशी लोगों के प्रति नफ़रत पैदा करने की कोशिश बताई है।

ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन भी कोरोना से संक्रमित हो गए थे। इससे ब्रिटेन और चीन के रिश्तों में तनाव बढ़ने की काफ़ी अधिक संभावना है। चीन के खिलाफ़ मोर्चा खोलने में ब्रिटेन पीछे नही रहेगा। देखना ये है कि चीन के खिलाफ़ लड़ने के लिये ब्रिटेन कौनसा रास्ता चुनेगा।

ऐसी परिस्थितियों से यह साबित होता है कि कोरोना-संकट खत्म होने के बाद चीन का बुरा वक़्त शुरू हो जाएगा। चीन को कई तरह के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। कानूनी मसले और आर्थिक बदलाव चीन के लिए कई नई परेशानियाँ खड़ी कर देंगे।

इन समस्याओं का सामना करने के लिए चीन को बहुत ही धैर्य और सूझबूझ के साथ कदम उठाने होंगे अन्यथा उसे मुँह के बल गिरने में देर नहीं लगेगी। इन नाज़ुक हालातों में चीन का रवैया उसके लिए घातक साबित हो सकता है।

भारत के लिए यह एक सुनहरे मौके के रूप में प्रतीत होता है। आज के समय में भारत एफडीआई के मामले में चीन से आगे है। विदेशी कंपनियाँ भारत को अपनी पहली पसंद मानती हैं। ऐसे में यदि भारत इस मौके का फायदा उठा लेता है तो यहाँ कारोबार के साथ रोज़गार भी बढ़ेगा। कोरोना से निपटने के बाद होने वाले आर्थिक संकट का सामना करने के लिए भारत के पास एक अच्छा मौका है।

1978 के बाद से चीन में औद्योगिक विकास ने तेज़ रफ्तार पकड़ी जिससे चीन का आर्थिक और सामाजिक विकास हुआ। तब से ही चीन ने विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाना शुरू कर दी थी।

चीन का सपना था कि वह अगले 50 सालों में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन जाये। इसी सपने को पूरा करने के लिए उसने विदेशी कंपनियों को काम करने के लिए सबसे अच्छा औद्योगिक वातावरण प्रदान किया।

देखते ही देखते उसने कई बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ दिया और बाज़ारो को चीन में बने सामानों से भर दिया। विकासशील देशो के साथ व्यापार बढ़ाकर और अपनी प्रभुत्वशाली नीतियों से चीन ने पूरे विश्व में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। इन्हीं नीतियों के बलबूते पर चीन ने कई क्षेत्रों में एकाधिकार कर लिया।

हालांकि आज के हालातों को देखकर ऐसा लगता है कि अब वह सपना हकीकत नहीं बन पाएगा। लंबे समय से चली आ रही आंतरिक समस्याओं के कारण वैश्विक स्तर पर चीन का नाम खराब हो रहा है। इसके अतिरिक्त कोरोना से पूरी दुनिया में त्राहि मचा कर उसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।

इन तनावों के चलतें कई कंपनियाँ चीन से निकलने की तैयारी में है। यदि ये कंपनियाँ भारत में आकर अपना कारोबार शुरू करती हैं तो भारत को लगभग 25 से 30 लाख करोड़ का फायदा होगा। युवाओं को नए रोज़गार मिलेंगे। देश की आमदनी बढ़ेगी और देश का विकास होगा।

27 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मुख्यमंत्रियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए दिशा-निर्देश दिए थे। इसमें लॉकडाउन समेत अन्य मुख्य बिंदुओं पर चर्चा भी हुई थी। बताया जा रहा है कि देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए भी कई फैसले लिए गए जिसमें चीन से बाहर निकलने वाली लगभग सौ कंपनियों को भारत बुलाने की बात भी शामिल है।

लॉकडाउन के दौरान प्रतिदिन अरबों का नुकसान हो रहा है। इसकी भरपाई के लिए यह सुनहरा मौका है। हमारी सरकार को पूरी कोशिश करनी चाहिए कि इन परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाकर देश की अर्थव्यस्था संभाली जाए और इस बोनस का फायदा देश की जनता तक पहुँचाया जाए।

About Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *