Lock down: परिवहन और भोजन व्यवस्था न होने से नाराज सैकड़ो मजदूरों ने महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश सीमा पर किया विरोध प्रदर्शन

BY- FIRE TIMES TEAM

गुरुवार को सैकड़ों प्रवासी मजदूरों ने मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र सीमा पर सेंधवा शहर में विरोध प्रदर्शन किया, भोजन और परिवहन व्यवस्था की मांग की।

यह शहर महाराष्ट्र से बिहार और उत्तर प्रदेश जाने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव बिंदु है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि प्रवासी मजदूरों ने घटनास्थल पर तैनात पुलिस कर्मियों पर पत्थर फेंके।

एक मजदूर ने कहा कि प्रवासियों के समूह, जिसमें गर्भवती महिलाएं, बच्चे और बूढ़े शामिल हैं, उन्हें भोजन और पानी भी उपलब्ध नहीं कराया गया। उन्होंने कहा कि वे घंटों तक सीमा पर परिवहन का इंतजार करते रहे।

मध्य प्रदेश के रहने वाले सैलेश त्रिपाठी ने कहा, “यहां पर लोग एक महीने के बच्चों के साथ यात्रा कर रहे हैं।”

शैलेश ने बताया, “महाराष्ट्र सरकार ने हमें यहां तक ​​भेजा, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार हमारी कोई मदद नहीं कर रही है। हम कल रात से भूखे-प्यासे यहां पर हैं।”

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जिला कलेक्टर अमित तोमर ने कहा कि प्रवासी मजदूरों ने पथराव इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगा कि उन्हें घर ले जाने के लिए कोई और बस नहीं अब नहीं है।

उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने उन्हें शांत किया और राज्य के विभिन्न जिलों में उन्हें भेजने के लिए 135 बसों की व्यवस्था की।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र से आने वाले लोगों को जो अपने स्वयं के वाहनों में या परिवहन के अन्य साधनों के माध्यम से आये हैं, उन मजदूरों को मध्य प्रदेश सरकार भोजन, पानी और आश्रय प्रदान कर रही है।

मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि पिछले तीन दिनों में सेंधवा सीमा से लगभग 15,000 प्रवासी मजदूरों को अन्य स्थानों पर ले जाया गया है।

सरकार ने कहा कि उसे महाराष्ट्र से आये मजदूरों की एक बड़ी संख्या से निपटना था।

राज्य सरकार ने कहा, “प्रवासियों का सबसे अधिक दबाव सेंधवा की सीमा पर बिजवासन घाट पर पड़ रहा है। हर दिन 5,000 से 6,000 प्रवासी मजदूर वहाँ पहुँच रहे हैं।”

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मजदूरों से धैर्य रखने की अपील की और उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें मेडिकल चेकअप और भोजन के बाद नि: शुल्क परिवहन दिया जाएगा।

लॉकडाउन के बाद से नौकरियों और भोजन के बिना, प्रवासी मजदूरों को अपने परिवारों के साथ घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

कई लोगों ने अपने छोटे बच्चों और बुजुर्ग माता-पिता के साथ पैदल, साइकिल या ट्रकों में लंबी यात्रा की है।

कई प्रवासी मजदूरों की रास्ते में ही मौत भी हो चुकी है।

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