दिल्ली दंगा: अपराधियों को बचाने और पीड़ितों को फ़साने का मुकम्मल प्रयास

 BY- राजीव यादव

फरवरी 2020 में होने वाली दिल्ली हिंसा के संदर्भ में “संविधान वॉच” द्वारा जारी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस द्वारा पुष्ट जान–माल के नुकसान के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि इसमें सबसे ज्यादा नुकसान मुसलमानों का हुआ। यहां तक कि उनके धार्मिक स्थलों पर भी हमले किए गए।

इसमें खासतौर से सीलमपुर, चांगबाग़ और गोकुलपुरी के पास के बड़ी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र शामिल थे, जहां विवदास्पद नागरिकता कानून वापस लेने की मांग करते हुए शान्तिपर्ण विरोध प्रदर्शन चल रहे थे।

भाजपा नेताओं की तरफ इन प्रदर्शनों को बदनाम करने के लिए कई तरह के आरोप लगाए जाते रहे थे खासकर दिल्ली चुनाव के दौरान उसके वरिष्ठ नेताओं ने उनको ‘देश विरोधी या देश के खिलाफ’ साजिश तक कहा था जिसका अक्स दिल्ली पुलिस की जांच में भी साफ देखा जा सकता है।

इसमें दिल्ली पुलिस की मुसलमानों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण भूमिका में दंगों के दौरान खामोश तमाशाई बने रहने या हिंदू दंगाई समूहों का साथ दने का आरोप भी शामिल हैं। दंगों की जांच में इसने न केवल दंगा पीड़ित मुसलमानों बल्कि सीएए आंदोलनकारियों और उनका समर्थन करने वाले संगठनों के सदस्यों गिरफ्तार और प्रताड़ित किया।

यूएपीए और अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमें कायम किए बल्कि वैचारिक आधार पर लक्ष्य बनाते हुए ‘कट्टरपंथी और वामपंथी संगठनों” जैसे नदी के दो किनारों को भी एक कर दिया।

रिपोर्ट में अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्युमन राइट्स वाच और एम्नेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्टों को भी उद्धृत किया गया है जो इस रिपोर्ट के निष्कर्षों की पुष्टि करती हैं। ह्युमन राइट्स वाच ने कहा कि यह “हिंदू भीड़ की ओर से लक्षित हमला था” जबकि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा, “दंगों से पहले (भाजपा) नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए”।

रिपोर्ट दंगों को पूर्व नियोजित बताते हुए जहां एक तरफ मुख्यधारा की मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं वहीं भाजपा समर्थित संगठनों द्वारा पीड़ित मुसलमानों का दानवीकरण का संगठित अभियान भी चला गया जिसके लिए विशेष रूप से भाजपा समर्थक ‘ऑपइंडिया और स्वराज’ द्वारा दंगों पर जारी रिपोर्टों का भी हवाला दिया गया है।

रिपोर्ट में मानवाधिकार आयोग समेत पूरे न्यायतंत्र को भी उसकी भूमिका के लिए कटघरे में खड़ा किया गया है जो संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अधिवक्ताओं पर हमलों, प्रताड़नाओं और फर्जी मुकदमों का ज़िक्र करते हुए न्याय और देशहित में आठ सूत्रीय मांग भी की गई है।

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