अखिलेश और शिवपाल के गठबंधन मेें आजमगढ़ बन सकता है रोड़ा?

BY – FIRE TIMES TEAM

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 1 सीट ही मिल पाई। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2022 में होने वाले विधानसभा के मद्देनजर शिवपाल यादव के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

अखिलेश यादव ने सार्वजनिक रूप से एक बयान भी दिया था कि उनकी पार्टी,  प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के लिए जसवंतनगर सीट छोड़ दी है। और प्रसपा (लोहिया) के साथ गठबंधन को तैयार है।

लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि इस गठबंधन में सबसे बड़ा रोड़ा आजमगढ़ बन सकता है। आजमगढ़ जिले में 10 विधानसभा सीट हैं। और यहां के ज्यादातर बड़े नेता प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। वे सभी विधायक बनने की महत्वकांक्षा भी रखते हैं।

सपा से अलग होने वाले प्रसपा के नेताओं को लगता है कि यदि यह गठबंधन होता है तो अखिलेश यादव अपने संसदीय क्षेत्र में प्रसपा को एक भी सीट नहीं देंगे। जिससे उनके करियर पर खतरा मडराने लगा है।

मौके पर आजमगढ़ जिले के दस विधानसभा सीटों में से 5 विधायक सपा से, 4 बसपा से और 1 बीजेपी से है। फूलपुर पवई विधानसभा से पूर्व सांसद रमाकांत यादव के पुत्र अरूणकांत यादव बीजेपी से विधायक हैं।

आजमगढ़ जिले में हमेशा से सपा-बसपा का दबदबा रहा है। यहां तक कि 1991 में राममंदिर मुद्दे को लेकर भी बीजेपी कोई खास कमाल नहींं कर पाई थी। उस समय भी 2 सीटें ही बीजेपी के खाते में गई थी।

समाजवादी पार्टी आजमगढ़ जिले को सुरक्षित सीट मानती है। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 10 में से 9 सीटे मिली थीं। मुबारकपुर सीट बीएसपी के खाते में सिर्फ इसिलए चली गई थी क्योंकि सपा के पूर्व जिलाअध्यक्ष रामदर्शन यादव एसपी से बगावत कर बीजेपी से चुनाव लड़े थे।

रामदर्शन यादव की बाद में फिर सपा में वापसी हुई। लेकिन साल 2016  में अखिलेश और शिवपाल के बीच विवाद के बाद रामदर्शन यादव शिवपाल के पीएसपीएल में चले गये।

2019  के लोकसभा चुनाव में हेमराज पासवान पीएसपीएल के टिकट पर आजमगढ़ के लालगंज से चुनाव लड़े जिसमें उनकी करारी हार हुई। यह पहले सपा में ही थे लेकिन बाद में शिवपाल के साथ हो लिये। अब इनको भी विधायक बनने लालसा है।

इसके अलांवा पुराने समाजवादी नेता राप्यारे यादव भी अब  पीएसपीएल में हैं। रामप्यारे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के आजमगढ़ के जिलाध्यक्ष हैं और अतरौलिया के बलराम यादव के करीबी रहे हैं।

ये सभी नेता सपा और प्रसपा(लोहिया) के गठबंधन की राह में बड़ा रोड़ा साबित हो सकते हैं।

 

 

 

 

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