कोरोना के कारण ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जो प्रभावित न हुआ हो। विश्वविद्यालय से लेकर स्कूल तक बंद करने पड़े हैं। छात्रों को बिना परीक्षा कराए दूसरी कक्षा में प्रोमोट कर दिया गया है।
ऐसे में जब कोरोना के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं तब राज्यों के विधानसभा चुनाव कराना कितना उचित होगा। राज्यों में बिहार एक ऐसा राज्य है जिसके विधानसभा चुनाव बहुत जल्द होने हैं। अब जब कोरोना के मामले 10 लाख करीब होने वाले हैं तब क्या बिहार का चुनाव अगले साल तक स्थगित नहीं किया जा सकता?
आइए जानते हैं निर्वाचन आयोग के पास क्या अधिकार हैं?
भारत में समय से चुनाव हों यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति सहित लोकसभा व राज्यसभा के साथ-साथ राज्यों के विधानसभा के चुनाव यही आयोग करवाता है। यह एक संवैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी।
वर्तमान में इसके मुख्य निर्वाचन आयुक्त समेत दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं। इसी चुनाव आयुक्त पर निर्भर है बिहार चुनाव का स्थगन। यह आयोग सामान्यतः केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों से सलाह लेने के बाद ही चुनाव के स्थगन संबंधी फैसला लेता है।
मतलब यदि केंद्र सरकार व बिहार की सरकार चुनाव के स्थगन संबंधी कोई फैसला लेती है तो चुनाव कुछ समय के लिए स्थगित किये जा सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 324 का प्रयोग करके चुनाव आयोग समय सीमा को बढ़ा या घटा सकता है। यह उसकी असाधारण शक्ति के अंतर्गत आता है।
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चुनाव स्थगित करने के लिए मुख्यतः दो निर्णय लिए जा सकते हैं। पहला यह कि राज्य में मौजूदा सदन की समाप्ति पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। दूसरा राष्ट्रपति राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री को विघटन के बाद भी कुछ समय तक कार्य जारी रखने की अनुमति दे सकते हैं।
बिहार के मौजूदा सदन का कार्यकाल 29 नवंबर 2020 को समाप्त हो रहा है अतः इसके पहले चुनाव कराना चाहिए।