“अशोक सिंघल”
15 सितम्बर 1926 को आगरा में जन्में अशोक सिंघल के पिता एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत थे। बाल अवस्था से लेकर युवावस्था तक अंग्रेज शासन को देख कर बड़े हुए और उसी दौरान वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गये।
1942 में आरएसएस ज्वाइन करने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। समाज को अपना जीवन समर्पित कर चुके सिंघल ने 1950 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मटलर्जी साइंस में इंजीनियरिंग पूरी की।
इंजीनियर की नौकरी करने के बजाये उन्होंने समाज सेवा का मार्ग चुना और आगे चलकर आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। उन्होंने उत्तर प्रदेश और आस-पास की जगहों पर आरएसएस के लिये लंबे समय के लिये काम किया और फिर दिल्ली-हरियाणा में प्रांत प्रचारक बने।
घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ।
1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक सिंघल की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे माता जी ने अशोक सिंघल को शाखा जाने की अनुमति दे दी।
वर्तमान दौर पर उनकी गहरी छाप दिखाई देगी । अयोध्या में राम मंदिर का जो निर्माण कार्य हो रहा है उसकी पृष्ठभूमि में निरंतर प्रयास अशोक सिंघल के ही दिखाई देते हैं।
भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार अगर अगर आज दूसरा कार्यकाल पूरा करने की ओर बढ़ रही है तो इसके पीछे जो जनमत तैयार हुआ उसमें सबसे बड़ी भूमिका भी शायद अशोक सिंघल की ही है।
और अगर आपको देश में लगातार बढ़ रही सांप्रदायिकता या उसकी हर ओर फैलती नफरत परेशान करती है तो बहुत मुमकिन है कि आपको उसके मूल में कहीं न कहीं अशोक सिंघल ही खड़े दिखाई देंगे ।
एक सबसे महत्वपूर्ण दौर में ‘विश्व हिंदू परिषद’ के अध्यक्ष रहे उन्होंने कभी विनम्रता का ढोंग नहीं किया ।
उन्होंने ग्वालियर घरआने के सुप्रसिद्ध गायक पंडित ओमकारनाथ ठाकुर से पूरे 6 साल तक संगीत सीखा लेकिन सिंघल ने इसे अपना कैरियर नहीं बनाया वे शायद राजनीति के लिए ही बने थे ।
अशोक सिंघल अभी विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय हुए ही थे कि तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में एक बड़ी घटना हो गई ।वहां के एक गांव तिरुनेलवेली में लगभग 1200 दलितों ने फरवरी 1981 इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया अशोक सिंघल ने इस मामले को पुरजोर ढंग से उठाया ।
विश्व हिंदू परिषद उस इलाके में एक स्थानीय संगठन हिंदू मुन्नानी के साथ इन लोगों को अपने धर्म में वापसी के लिए सक्रिय हुई , लेकिन इनमें से सिर्फ 7 लोग ही हिंदू धर्म में वापस आए । इस बीच कई दूसरे अध्ययन दल भी इस इलाके में सक्रिय हुए और ज्यादातर में यह बात सामने आई कि दलितों की नाराजगी का एक बड़ा कारण यह है कि उनके साथ भेदभाव तो होता ही है साथ ही उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जाती ।
इस तर्क को भले ही संघ परिवार ने खुले रुप में स्वीकार न किया हो लेकिन अशोक सिंघल की अगुवाई में उस इलाके में बड़ी संख्या में ऐसे मंदिर बनवाये गए जहाँ दलित बराबरी के साथ जा सकें ।और यह कहा जाता है कि इसके बाद उस इलाके में धर्म परिवर्तन पूरी तरह रुक गया ।
इस दौरान अशोक सिंघल ने बड़े पैमाने पर साधु संतों और धर्मगुरुओं से संपर्क किया और अपने साथ जोड़ा। इसने संघ परिवार को एक ऐसी नई ताकत दी जो अभी तक उससे दूर थी।
1984 में अशोक सिंघल ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पहली धर्म संसद का आयोजन किया।
इसी सम्मेलन में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया यहां राम मंदिर आंदोलन का जन्म हो चुका था जिसके मुख्य कर्ताधर्ता थे अशोक सिंघल।
आधिकारिक रूप से भाजपा भले ही कहती रही हो कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण उसके एजेंडे में नहीं है लेकिन यह उसकी जरूरत बनता जा रहा था। इससे अशोक सिंघल की अहमियत बढ़ने लगी।
राजीव गांधी सरकार ने भी राम मंदिर मामले में रुचि लेना शुरू कर दिया। विवादित बाबरी मस्जिद के पास की जमीन पर केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह व यूपी के मुख्यमंत्री के सहयोग से विश्व हिंदू परिषद ने 1989 में मंदिर के लिए शिलान्यास कर दिया। देश में कई जगह सांप्रदायिक दंगे भड़के हजारों जाने गई ।
इसका परिणाम यह हुआ कि अगले ही आम चुनाव में भाजपा की सीटें 2 से बढ़कर 58 हो गई। जनता दल की गठबंधन सरकार में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो लगा कि इस मसले को गर्माने का वक्त आ गया है।
1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के मुद्दे पर देश भर में रथयात्रा निकाली। इसी बीच अशोक सिंघल ने अयोध्या में कारसेवा का आयोजन किया। बड़ी संख्या में कारसेवक वहां पहुंचने लगे तो मुलायम सिंह यादव की सरकार ने वहां निषेधाज्ञा लागू कर दी सरकार और कारसेवकों में टकराव हुआ और कहीं जाने गई।
इसके साथ ही यूपी समेत कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनी यूपी में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। जिन्होंने खुलकर राम मंदिर के निर्माण की बात शुरू कर दी अशोक सिंघल ने परिषद की भूमिका को हमेशा महत्वपूर्ण बनाए रखा। उन्होंने कई धार्मिक नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया था जो देश में घूम घूम कर माहौल बना रहे थे।
उन्होंने 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में धर्म संसद का आयोजन किया और इसके बाद घोषणा कर दी कि 6 दिसंबर को अयोध्या में कारसेवा शुरू होगी। 6 दिसंबर से पहले जब कारसेवक बड़ी संख्या में अयोध्या पहुंचने लगे तो आशंकाएं गहराने लगीं।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कल्याण सिंह ने वादा किया कि उनकी सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखेगी ।अनुमानों के अनुसार दो लाख के करीब कारसेवक वहां मौजूद थे। 6 दिसंबर को यह लोग बाबरी मस्जिद की इमारत पर चढ़ गए और देखते ही देखते उसे ढहा दिया गया।
देखने वालों में वहां मौजूद पुलिस बल भी था जो मूकदर्शक बना रहा। वहां जो कुछ भी हुआ उससे अशोक सिंघल जी के बारे में एक धारणा यह तो बन ही गई थी उनके आवाहन पर दो लाख से ज्यादा लोग जमा हो सकते हैं। राजनीति में अशोक सिंघल की पहचान हमेशा एक धार्मिक नेता के रूप में रही।
उन्होंने गौ हत्या, धर्म परिवर्तन जैसे मुद्दों को गंभीरता से उठाया और आगे आकर उसके लिए लड़े भी। सिंघल ने जिस तरह से साधु समाज का विश्वास हासिल किया वैसा राजनीति या समाज में सक्रिय और कोई व्यक्ति नहीं कर सकता।
वह जीवन भर राम मंदिर के लिए लड़ते रहे लेकिन जब मंदिर बनना शुरू हुआ उसके कई साल पहले ही हिंदू हृदय सम्राट सिंघल हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गए।