अखिलेश ने कहा पुरानी पेंशन बहाल करेंगे, क्या बीजेपी भी इस मसले पर हाँ करेगी?

अखिलेश यादव ने कहा है कि उनकी सरकार आएगी तो पुरानी पेंशन की व्यवस्था लागू कर देगी। यूपी में पेंशन के लिए लड़ रहे कर्मचारियों ने यहाँ तक एक बड़ी सफलता हासिल कर ली है।उन्होंने सत्ता की दावेदार एक दल को मजबूर कर दिया है कि पुरानी पेंशन की बहाली पर स्टैंड ले।

बीजेपी को भी लाखों सरकारी कर्मचारियों का वोट चाहिए। जिस तरह से पार्टी ओबीसी वोट बैंक में प्रतिस्पर्धा कर रही है, क्या कर्मचारियों के इस बड़े तबके का वोट पाने के लिए पुरानी पेंशन की बात करेगी?

अगर बीजेपी यूपी में हाँ कहती है तो उसे हिमाचल प्रदेश में भी हाँ कहनी होगी, लेकिन सबसे पहले केंद्र में पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करना होगा। ऐसा तो हो नहीं सकता कि प्रधानमंत्री मोदी यूपी के लिए पुरानी पेंशन लागू करने की बात करेंगे और केंद्र की नौकरियों के लिए नहीं करेंगे।

अगर सरकारी कर्मचारी चौकस और ईमानदार रहेंगे कि तो इस चुनाव के बहाने पुरानी पेंशन की बहाली के मुद्दे को राजनीतिक धार दे सकते हैं और सफलता भी हासिल कर सकते हैं।यूपी में भी और उससे पहले केंद्र में भी।

वैसे मेरा अब भी मानना है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए धार्मिक पहचान के नाम पर मिली सांप्रदायिक सोच से बाहर निकलना संभव नहीं है। यह ऐसा काम नहीं है कि आप बीजेपी से निकल कर दूसरे दल में जाते ही अ-सांप्रदायिक हो जाते हैं। इसके लिए जिस बौद्धिक अभ्यास की ज़रूरत होती है उसकी क्षमता और ईमानदारी इनमें नहीं है।आप केवल बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट करके सांप्रदायिकता से छुटकारा नहीं पाते हैं। यह बीमारी व्यक्तिगत है, फिर सामाजिक है और तब राजनीतिक है। यह बीमारी उलट क्रम में भी चलती है। राजनीति से भी आती है। मेरा साफ़ मानना है कि ग़ैर बीजेपी दलों में रहते हुए कोई घोर सांप्रदायिक हो सकता है। होता भी है।

अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन के लिए हामी भर कर कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग में हलचल मचा दी है। वोट मिलेगा या नहीं, कह नहीं सकता। क्या बीजेपी पुरानी पेंशन की बहाली का वादा कर सकती है? वादा करने के लिए कर देगी।

आप याद कीजिए। बिहार में तेजस्वी यादव दस लाख रोज़गार देने का वादा कर रहे थे। बीजेपी ने पहले मज़ाक़ उड़ाया। फिर जब लगा कि टक्कर मिल सकती है तो 19 लाख देने का वादा कर दिया। युवाओं ने बीजेपी पर भरोसा किया। बीजेपी चुनाव जीत गई और 19 लाख रोज़गार किसे मिला है, आप बिहार के युवाओं से पूछ सकते हैं।ममकिन है इसी तरह के बीजेपी यूपी में भी कर देगी और पुरानी पेंशन का वादा कर दे। बाद में नहीं देगी। यूपी में भी 2017 में सत्तर लाख रोज़गार देने का वादा किया था। कौन पूछ रहा है कि ये रोज़गार कहां है? यूपी के युवाओं का यह एक से दस के स्केल पर दसवाँ प्रश्न भी नहीं है।

मेरा मानना है कि अगर बीजेपी यह भी कह देती कि कोई रोज़गार नहीं देगी तब भी बिहार के युवा बीजेपी को वोट करते। यूपी बिहार के युवाओं को जाति और धर्म के गर्त से निकालने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए। ऐसा करना उन्हें उनके आत्मिक सुख से अलग कर देना होगा।

धर्म और जाति ऐसे दो मुद्दे हैं जो बिना किसी बौद्धिक श्रम के इन युवाओं को प्रखर राजनीतिक पहचान देते हैं। इसी से इनकी बातों में इतनी स्पष्टता आती है कि दिल्ली से गया हर जानकार समझता है कि यूपी बिहार के युवा राजनीतिक रुप से कितने स्मार्ट हैं।

बस मेरा एक सवाल है। बिहार और यूपी के युवाओं ने इस स्मार्टपन से हासिल क्या किया? अपने अपने राज्य के कुछ अच्छे कालेज ही बता दें? अस्पताल? छोड़िए इस मसले को यहाँ।

यूपी जैसे बड़े राज्य से पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा बीच चुनाव में आ खड़ा हुआ है तो यह साधारण बात नहीं है। क्या सरकारी कर्मचारी और उनका परिवार अखिलेश के साथ खड़ा होगा? बिना अनुभव और नए तथ्यों के अपनी जानकारी में बदलाव से बचना चाहिए।

2019 के चुनाव में पुरानी पेंशन की माँग को लेकर रामलीला मैदान में बड़ा प्रदर्शन हुआ था। उस समय जुटी भीड़ को देखकर दंग रह गया था तब भी मेरा अंदाज़ा सही था। माँग करना अलग है, भाजपा की धार्मिक पहचान की राजनीति से अलग होना अलग है।

पुरानी पेंशन की माँग को लेकर रामलीला मैदान में जुटे लोग ही जानते होंगे कि वोट अपने मुद्दे पर दिया था या किसी और मुद्दे पर। 

पुरानी पेंशन की बहाली को बीजेपी को हराने के मुद्दे के रुप में नहीं देखना चाहिए। सभी को पेंशन मिलनी चाहिए। आज सरकारों के पास काफ़ी पैसा है। इस पैसे को सरकारें जनता से झूठ बोलने में लुटा रही हैं। करोड़ों रुपये की मूर्ति बनाने और सैंकड़ों करोड़ के विज्ञापन में फूंक देती हैं।

सरकारी कार्यक्रम आलीशान होने लगे हैं। वोट ख़रीदने के लिए किसी वर्ग के खाते में पाँच सौ तो किसी खाते में हज़ार रुपये झट से डाल देती है। इन सभी की समीक्षा होनी चाहिए और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार होना चाहिए।

सभी को उचित पैसा मिलना चाहिए। न कि ख़ैरात के रुप में जिस तरह यूपी में चुनाव को देखते हुए ई श्रम कार्ड बनाने वाले सात करोड़ में से डेढ़ करोड़ खाता धारकों के खाते में हज़ार रुपये डाल दिए गए। इसके लिए ज़रूरी है कि यूपी चुनाव में ओबीसी, ब्राह्मण और मंदिर की जगह पेंशन और नौकरी की बात हो। वो शायद चुनाव के बाद होगी।

रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार

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