हम 21वींशदी में जी रहे हैं लेकिन अभी भी सामाजिक रूप से बहुत पीछे हैं। भारत को विश्व गुरु बनाने की हर कोई बात कहता है लेकिन करोडों लोगों को अभी भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है। जाति के दंश के साथ-साथ देश में और भी ऐसी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चल रही हैं जो सामाजिक स्तर पर लोगों को अलग करती हैं।
जातिवाद का ताजा मामला उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद से सामने आया है। यहां एक युवती के अंतिम संस्कार को महज इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वह दलित थी। सवर्ण समाज के लोगों द्वारा उस महिला के अंतिम संस्कार दूसरी जगह पर करने को कहा गया।
दरअसल आगरा जिले के काकरपुर गांव में एक नट समुदाय की महिला का 19 जुलाई को निधन हो गया था। उस महिला को जिस श्मशान घाट ले जाया गया वहां सवर्ण समुदाय के लोगों ने रोक दिया। सवर्ण समाज के लोगों का कहना था कि उस श्मशान की भूमि में किसी और जाति के लोग अपना अंतिम संस्कार नहीं कर सकते।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 26 वर्षीय पूजा की मौत गर्भाशय में संक्रमण के कारण हो गई थी। पति राहुल और परिवार के अन्य लोग शव को ग्राम सभा की श्मशान भूमि पर ले गए थे। जहां उनको शव का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया गया।
इस मामले को लेकर अभी तक कोई एफआईआर नहीं लिखी गई है। प्रशासन कह रहा है कि इस क्षेत्र में जाति का बहुत गहरा असर है और परिवार ने अभी तक कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है।
महिला के पति राहुल ने कहा, ‘हमारे समुदाय के अंतिम संस्कार के लिए निर्धारित श्मशान भूमि पर एक ब्राह्मण ने कब्जा कर लिया है। इसलिए हमने पूजा का अंतिम संस्कार उस जमीन पर करने का फैसला लिया जहां और लोग करते हैं। हमने चिता तैयार की और जैसे ही मेरा चार साल का बेटा चिता को आग देने वाला था वैसे ही ठाकुर लोगों का समूह आ गया। उन्होंने हमसे अंतिम संस्कार रोकने के लिए कहा।’
राहुल के भाई ने बताया कि ठाकुर समुदाय के लोग नहीं माने और हमें शव को चार किलोमीटर दूर नागला लाल दास श्मशान घाट ले जाने पर मजबूर किया।