BY- BIPUL KUMAR
आइएनएस विक्रांत का डिजाइन 2003 में तत्कालीन अटल सरकार ने मंजूर किया। 2009 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसका जोरशोर से निर्माण शुरू हुआ।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही अगस्त 2013 में इसका नामकरण किया गया और विक्रांत नाम रखा गया लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसका काम लगभग बन्द हो गया था।
रूस ने जरूरी सामान देने से इनकार कर दिया स्टील का दाम भी तेजी से बढ़ा और रक्षा बजट भी कम था इसलिये भी बहुत सारी दिक्कतें सामने आईं थीं। मोदी की वजह से यह जलपोत 12 साल विलंब से कमीशन्ड हुआ और इसकी कीमत भी 13 गुना बढ़ गई।
यहां तक कि कैग को कहना पड़ा कि विक्रांत के निर्माण में लगी एजेंसियों की कार्यप्रणालियों में विसंगति की वजह से यह अनावश्यक विलंब हुआ है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पहले पूर्णतया स्वदेशी युद्ध पोत आई एन एस विक्रांत का निर्माण अप्रैल 2005 में शुरू हुआ था। जिसमें 23 हज़ार टन लोहा, 2500 किलोमीटर बिजली केबल, 150 किलोमीटर पाइप, 2000 वाल्व लगे हैं।
तब की यूपीए सरकार ने ही उसे पूर्णतया स्वदेशी बनाने का निर्णय लिया था। इसको पूरा करने में 550 कम्पनियां अलग अलग काम कर रही थीं।
मनमोहन जी इस पूरे कार्य को सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों से ही करवाना चाहते थे। प्रारंभ में हुआ भी – फिर रेवड़ी बंट गई कई निजी कम्पनियों में। यही नहीं इस युद्ध पॉट का एक बार उदघाटन 12 अगस्त 2013 को तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटोनी भी कर चुके हैं।
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