यूक्रेन-रूस की लड़ाई को साम्प्रदायिक रंग देने में अभी तक क्यों विफल रही है भारतीय मीडिया?

BY- PRIYANSHU

यूक्रेन-रूस की लड़ाई को साम्प्रदायिक रंग देने में भांड मीडिया अबतक विफल रही है। यूक्रेन ईसाई बहुसंख्यक देश है वहीं रूस में ईसाई और यहूदियों की संख्या ज्यादा है। पुतिन और ज़ेलेंस्की भी मुसलमान नहीं है। पुतिन मुसलमान होते तो अब तक देश के मुसलमान सियासी कटघरे में खड़े कर दिए गए होते।

कल ही रूस के हमले में भारतीय छात्र की मौत हो गई है। तमाम बर्बादी और परेशानियों के लिए रूस और पुतिन जिम्मेदार है, बावजूद इसके आज ट्विटर पर रूस के समर्थन में ट्वीट किए जा रहे है। कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पुतिन ने मोदी का समर्थन किया था, अब भारत का एक खास वर्ग इसी का हवाला देकर “आई स्टैंड विद रूस” लिख रहा है। भारत का राष्ट्रवाद वैश्विक राजनीति के घृणित मायाजाल से भी ज्यादा विषैला हो चुका है।

ये तय है कि यूक्रेन की तबाही के बाद केवल रिफ्यूजी बचेंगे, लाशें बचेंगी, खंडहर बचेगा। उसपर एक तानाशाह के जीत की बदसूरत मुस्कान होगी, लेकिन हिंदुस्तान की बहुसंख्यक आबादी उसका भी जश्न मनाएगी। इस कुरूप काल में पुतिन का समर्थन मानवता के खिलाफ़ है। आने वाली पीढ़ी के लिए हम नफरत और हिंसा छोड़कर जा रहे है।

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