मुस्लिम नौजवान कम्युनिस्टों के जाल में क्यों फंस चुके हैं?

BY- FIRE TIMES TEAM

मुसलमान लड़के एक बार फिर कम्युनिस्टों के जाल में फँस चुके है। सोशल मीडिया पर विरोध के कारण एक ऐसी फ़िल्म जिसके बारे में देश की एक बड़ी आबादी को ख़बर भी नहीं थी अब उस फ़िल्म को लेकर छोटे-छोटे शहरों के सिनेमाघरों में दिखाने की माँग हो रही है।

तारीक अनवर चंपारण लिखते हैं कि अगर इस फ़िल्म में अरुंधति रॉय और निवेदिता मेनन के कैरक्टर को नहीं फिल्माया गया होता तब इसके विरोध का हवा नहीं दिया जाता और विवेक अग्निहोत्री की बाक़ी फिल्मों की तरह यह फ़िल्म भी बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिरता।

लेकिन विरोध ने इस फ़िल्म को बिज़नेस करने का मौक़ा बढ़ा दिया है। अगर यह फ़िल्म बिज़नेस करने में सफल होती है इसका मतलब है कि दर्शकों को पसन्द आ रहा है। फिर इसके बाद क्या होगा?

करण जौहर, संजय लीला भंसाली, अनुराग कश्यप इत्यादि भी दर्शकों के पसन्द और व्यापार को देखकर फ़िल्म बनायेंगे। इस तरह के विरोध ने गोधरा फाइल्स, अयोध्या, राम मंदिर और अनगिनत फ़िल्म बनाने का अवसर पैदा कर दिया है।

सत्ता उनके हाथों में है वह इतिहास अपनी तरह से प्रोजेक्ट करेंगे। जब आपके पास सत्ता थी तो आपने परज़ानिया बनाया था। आज उनके पास सत्ता है उन्होंने काश्मीर फाइल्स बना दिया है। अब इसी काश्मीर फाइल्स से गुज़रात चुनाव लड़ लिया जायेगा।

आप जितना मज़बूती से विरोध करेंगे फ़िल्म का बिज़नेस उतना तेज़ी से बढ़ेगा और भाजपा के लिये गुज़रात विधानसभा का चुनाव उतना सेक्यूर होगा।

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