बहरों को आवाज सुनाने के लिए धमाकों के बहुत ऊंचे शब्दों की जरूरत होती हैं-भगत सिंह

BY- राहुल कुमार गौरब

वाकई अद्भुत है आज के सोशल मीडिया के सबसे बड़े हीरो भगत सिंह पंजाबी नौजवानों को आज के सोशल मीडिया के सबसे बड़े विलेन जवाहरलाल नेहरू के साथ जाने की बात क्या करते थे।

बहरों को आवाज सुनाने के लिए धमाकों के बहुत ऊंचे शब्दों की जरूरत होती है-भगत सिंह

लाला लाजपत राय ने भगत और उनके साथियों के खिलाफ कहा था कि, ये नौजवान हमें लेनिन बनाना चाहते हैं. इतना ही नहीं, आगे कहा कि अगर इन नौजवानों को 50 रूपये की नौकरी मिल गई तो, ये झाग की तरह बैठ जाएंगे.

फिर भगत ने कीर्ति पत्रिका में लेख लिख कर पूछा कि इस भाषन का क्या अर्थ है? उस भाषण में उन्होंने वामपंथ का पक्ष सामने रखा. फिर लाला लाजपय राय की मौत का बदला लेने लाहौर गए, बस स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स क्रांतिकारियों का निशाना बन गए. इतने मतभेद के बावजूद इतनी मोहब्बत..आज तो जरा सा विरोध भी इंसान को देशद्रोही बना देता है..

भगत जहां बोस को एक भावुक बंगाली मानते थे वहीं जवाहरलाल नेहरू को एक अंतरराष्ट्रीय सोच वाले नेता के तौर पर देखते थे. भगत सिंह न कांग्रेस के नेता थे ना ही समर्थक. फिर भी भगत सिंह कहते हैं कि, भले ही बोस और नेहरू, दोनों पूर्ण स्वराज के समर्थक हैं, लेकिन उन दोनों की सोच में जमीन-आसमान का अंतर है.

सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों से आजादी का बस ये मकसद है कि वे पश्चिम के हैं और हम पूरब के. जवाहरलाल नेहरू के लिए आजादी का मतलब स्वशासन के जरिये अपनी सामाजिक व्यवस्था बदलना है. नेहरू के अनुसार आजादी उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता और स्वशासन सामाजिक बदलाव के लिए चाहिए.

वाकई अद्भुत है आज के सोशल मीडिया के सबसे बड़े हीरो भगत सिंह पंजाबी नौजवानों को आज के सोशल मीडिया के सबसे बड़े विलेन जवाहरलाल नेहरू के साथ जाने की बात क्या करते थे।

भगत सिंह नास्तिक थे. नास्तिकता वामपंथ की पहचान है. लेकिन जब भगत सिंह सरकार के हाथ लगे तो अख़बारों ने रिपोर्ट किया कि ‘समाजवादी क्रांतिकारी’ गिरफ़्तार हुआ है. पर भारत के वामपंथी खामोश रहे क्योंकि भगत आख़िर पार्टी के सदस्य जो नहीं थे. 90 के दशक मे जब कम्युनिस्टों को लगा कि देश की आज़ादी में उनके योगदान को नकारा जा रहा है. तो इतिहासकार प्रोफेसर विपिन चंद्रा का सहारा लेकर भगत सिंह को वामपंथी क्रांतिकारी बना दिए.

और अंत मे जब भगत सिंह की माँ उनसे आखिरी बार मिलने जेल गई थीं. तब भगत सिंह ने कहा क्यों रो रही हैं?
माँ तू तो ऐसे रो रही है जैसे मुझे फांसी पे लटकाने जा रहे हों।

देशद्रोही का सर्टिफिकेट बांटने हो या तथाकथित वामपंथी हो..ये सब भगत सिंह को भगवा पगड़ी में लपेटकर हिंदूवादी और लाल झंडा थमाकर वामपंथी बनाते रहेंगे. आप बस भगत सिंह का कहा सुनिए कि “किसी को भी पढ़िए, उसकी आलोचना करिए और तब अपने विचार बनाइये.

अमर बलिदानियों को शत शत नमन

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