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अपनी ही उगाई फसल की कीमत के लिए डंडे खाता किसान

BY- पुनीत सम्यक जो पीढ़ी गांवों में पैदा हुई है वहीं पली बढ़ी है, पर आज किसी कारणवश शहरों में रह रही है, उसे याद होगा कि उन्होंने सेर भर गेंहूँ के बदले क्या कुछ नही ख़रीदा है। एक सेर गेंहूँ के बदले तीन सेर मूली, चार सेर खीरा ककड़ी, दो …

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