क्या अशोक लवासा की इसलिए जासूसी करवाई गयी क्योकि वह ‘ईवीएम-वीवीपैट में खामियां ढूंढने में दिलचस्पी दिखा रहे थे?

 BY-गिरीश मालवीय

पेगासस से जुड़े खुलासे में चुनाव आयोग के पूर्व अधिकारी अशोक लवासा का भी नाम आया है आप शायद अशोक लवासा को भूल गए होंगे। मैं आपको याद दिला देता हूँ।

अशोक लवासा हरियाणा कैडर के (बैच 1980) के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं. लवासा का 37 सालों का प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कैरियर रहा है. वह भारत के चुनाव आयुक्त बनने से पहले 31 अक्तूबर 2017 को केंद्रीय वित्त सचिव के पद से सेवा-निवृत्ति हुए थे. इसके बाद उन्हें चुनाव आयुक्त बनाया गया

चुनाव आयुक्त अशोक लवासा वही हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान आचार संहिता के कथित तौर पर उल्लंघन के मामले में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ शिकायतों वाले चुनाव आयोग के क्लीन चिट देने के फैसले पर असहमति जताई थी.

उन्होंने पीएम मोदी और अमित शाह से जुड़े पांच मामलों में क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था। ये मामला वर्धा में एक अप्रैल, लातूर में नौ अप्रैल, पाटन और बाड़मेर में 21 अप्रैल तथा वाराणसी में 25 अप्रैल को हुई रैलियों में मोदी के भाषणों से संबंधित था।

पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ मिली आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों की जांच के लिए गठित समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, अशोक लवासा और सुशील चंद्रा शामिल थे।

मोदी औऱ शाह को क्लीन चिट दिए जाने पर चुनाव आयुक्त लवासा का मत बाकी दोनों सदस्यों से अलग था और वह इन आरोपों को आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में मान रहे थे। लेकिन बहुमत से लिए गए फैसले में दोनों के आचरण को आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानते हुए क्लीनचिट दे दी गई।

सिर्फ इतना ही नहीं लवासा के मत को भी रिकॉर्ड पर नहीं लिया गया। लवासा चाहते थे कि उनकी अल्पमत की राय को रिकॉर्ड किया जाए. उनका आरोप है कि उनकी अल्पमत की राय को दर्ज नहीं किया जा रहा है,

जब पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार दुर्वे ने यह जानने के लिए एक आरटीआई लगाई कि लवासा की इन टिप्पणियों में आखिर क्या लिखा है ?

तो उसका जवाब देते चूनाव आयोग आरटीआई अधिनियम के तहत चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की असहमति वाली टिप्पणियों का खुलासा करने से इनकार करते हुए कहा कि ‘यह छूट-प्राप्त ऐसी सूचना है जिससे किसी व्यक्ति का जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है’

जैसे ही पता चला कि लवासा ने चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए मोदी के लिए प्रतिकूल टिप्पणियां लिखी है उनके विरुद्ध पूरे प्रशासनिक अमले को सक्रिय कर दिया गया तुरंत लवासा की पत्नी, बेटे और बहन को आय से अधिक संपत्ति और इनकम घोषित न करने के आरोपों में नोटिस भेज दिया गया.

लेकिन इससे भी मोदी सरकार का जी नही भरा. फिर इस बात की जांच कराई गयी कि विद्युत मंत्रालय ने अपने सभी पीएसयू के चीफ विजिलेंस ऑफिसरों को यह पता लगाने का आदेश दिया कि कहीं लवासा के विद्युत मंत्रालय में 2009 से लेकर 2013 के कार्यकाल के दौरान कुछ कंपनियों को फायदा तो नहीं पहुंचाया गया।

नवम्बर 2019 में पूर्व IAS ऑफिसर के. गोपीनाथन ने लवासा के सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण बयान दिया था। गोपीनाथन ने कहा कि लवासा को ‘सरकार इसलिए निशाना बना रही है’ क्योंकि उन्होंने ‘ईवीएम-वीवीपैट में खामियां ढूंढने में दिलचस्पी दिखाई थी।’

गोपीनाथन ने ट्वीट करके लिखा, ‘एक चुनाव आयुक्त जिसने ईवीएम-वीवीपैट की प्रक्रिया में खामियां ढूंढने में दिचलस्पी दिखाई, उसे सरकार ने निशाना बनाया। हम अभी भी चुप हैं और उन्हें उनकी छवि खराब करने और बदनाम करने दे रहे हैं।’

अब आप समझ ही सकते है कि अशोक लवासा को क्यों सर्विलांस के लिए चुना गया था!

गिरीश मालवीय के फेसबुक पेज से साभार

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