लालू-ललुआ हो जाते है, किसी ने राजनाथ सिंह को राजनाथवा, जगदानंद सिंह को जगदवा क्यों नहीं कहा?

BY- PRIYANSHU

बिहार-यूपी घूम लीजिए, यहां मुलायम-लालू यादवों के नेता घोषित हो जाते है। नीतिश-बेनी प्रसाद-सोनेलाल कुर्मियों के नेता घोषित हो जाते है। रामविलास पासवान को दुषाद समुदाय के आगे किसी ने नहीं देखा, मायावती का असर गैर-जाटव दलितों में शून्य के बराबर रह जाता है। ओम प्रकाश राजभर मामूली विधायक की हैसियत में सिमट जाते है। स्वामी- केशव-उपेंद्र या बाबू सिंह कुशवाहा को जात के बाहर कोई नहीं पूछता।

कभी ध्यान दीजिए, और ढूंढिए इन्हें एक जात का नेता किसने बनाया, पिछड़ों के वोट में सेंधमारी के लिए दलित-पिछड़ों को किसने बांटा, बहुजनो में फूट डालकर किसने राजनीति की। किसे योगी आदित्यनाथ का ठाकुरवाद नहीं दिख रहा है.?

अधिकांश सवर्ण नेताओं की राजनीति उनके अपने समाज के उत्थान के लिए रही है, अभी भी है, पहले भी थी। लेकिन उनपर कभी जातिवाद के आरोप नहीं लगे, उन्हें एक जाति विशेष का नेता नहीं बताया गया, क्योंकी जातिवाद का आरोप लगाने वाले वही थे जो सामाजिक तौर पर मज़बूत है, खुद को ऊंच मानते है, बाकियों को नीच कहते है, गुलाम समझते है। सामाजिक और आर्थिक न्याय जिनके आंख में चुभता है।

नब्बे फीसदी से ज्यादा सवर्णों की तादाद वाला संघ हो, मेनस्ट्रीम मिडिया में सौ फीसदी आरक्षण के साथ एडिटर की कुर्सी पर बैठे मनुवादी एंकर्स हो या खुद को बुद्धिजीवी बताने वाला अपर-कास्ट वामपंथी वर्ग. इन्हें तमाम क्रीमी लेयर केवल पिछड़ों और दलितों में दिखते रहे है।

मायावती के लिए आज भी घटिया स्तर की भाषा और चुटकुलों का इस्तेमाल किया जाता है। लालू-ललुआ हो जाते है, नीतीश-नीतीशवा हो जाते है। किसी ने राजनाथ सिंह को राजनाथवा, जगदानंद सिंह को जगदवा नहीं कहा, किसी ने अटल बिहारी को अटलवा नहीं कहा, आडवाणी को अडवणिया नहीं कहा, किसी ने मिश्रा जी, राय जी, ठाकुर, सिन्हा, सिंह के नाम को नहीं बिगाड़ा.! क्यों.? क्योंकि नाम बिगाड़ने का काम, नीचा दिखाने का काम, जातिसूचक गाली देने का काम दलित-पिछड़ों का नहीं था, अब भी नहीं है।

इसीलिए अपनी संख्या के बराबर संसाधनों पर हिस्सेदारी देख लीजिए, सत्ता में साझेदारी का मुआयना कर लीजिए, जातिगत श्रेष्ठता का उद्घोष सुन लिजिए, सामाजिक तौर पर प्रतिष्ठा माप लिजिए फिर बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा का नारा पढ़िए:

“सौ में नब्बे शोषित हैं, शोषितों ने ललकारा है।
धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है” बिहार, यूपी समेत पूरे देश की क्रांतिकारी भूमि में सामाजिक बदलाव की चेतना इसी नारे से आयेगी।

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