डॉ. सुमित्रा महरोल की आत्मकथा ‘टूटे पंखों से परवाज़ तक’ का वाचन और परिचर्चा का हुआ आयोजन

BY-  पूजा प्रजापति

अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच की ओर से 1 मार्च 2021 की शाम डॉ. सुमित्रा महरोल की आत्मकथा ‘टूटे पंखों से परवाज़ तक’ का आत्मकथांश वाचन और परिचर्चा का आयोजन किया गया।

इसमें आत्मकथाकार डॉ. सुमित्रा महरोल, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश कर्दम, परिचर्चा के संयोजक, सूत्रधार के रूप में प्रो. हेमलता महिश्वर (जामिया मिल्लिया इस्लामिया), सहायक संयोजक के रूप में पूजा प्रजापति (शोधार्थी), प्रो.रेखा रानी (इफ़्लू, हैदराबाद), डॉ. लता प्रतिभा मधुकर (बहुजन स्त्रीवादी चिंतक) ने अपना वक्तव्य रखा। सुमित्रा जी ने अपनी आत्मकथा के एक अंश का पाठ किया।

प्रो. रेखा जी ने आत्मकथा के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालते हुए सुमित्रा जी के संघर्ष को सराहा। साथ ही,उन्होंने यह आवश्यकता भी जताई कि भविष्य में स्त्री आत्मकथाओं में माहवारी से होने वाली परेशानियों और उनके निदानों पर भी प्रकाश डाला जाए।

डॉ. लता जी ने आत्मकथा को समाज से जोड़ते हुए उसके समकालीन महत्व पर बल दिया। उन्होंने बल दिया कि किस तरह शारिरिक अक्षमता झेलती स्त्रियों को आगे बढ़ना जरूरी है। रोल मॉडल के रूप में सुमित्रा जी की यह आत्मकथा प्रेरणा दायक है।

डॉ. कर्दम जी ने शारीरिक विकलांगता के बजाए मानसिक विकलांगता का पर बल दिया। उन्होंने बताया कि सुमित्रा जी सुशिक्षित, नौकरीपेशा होते हुए भी शादी हेतु वर चुनने में उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुशिक्षित समाज में भी सुमित्रा जी को किस तरह दलित और विकलांगता के कारण भेदाभेद झेलना पड़ा। शिक्षा स्तर से ही नही बल्कि मानसिकता बदलने से स्वस्थ समाज जिसकी नींव समानता पर हो वह स्थापित किया जा सकता है।

सभी गणमान्य वक्ताओं ने सुमित्रा जी की भाषा शैली की सराहना की, उन्होंने पूरी आत्मकथा में आक्रामक भाषा का प्रयोग नहीं किया है। अपितु, विनम्र भाव से उन्होंने अपने जीवन-संघर्ष को चित्रित किया है।

सूत्रधार के रूप में प्रो. हेमलता जी ने आत्मकथा के कई पक्षों को उजागर किया। साथ ही, वक्ताओं के वक्तव्य पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते हुए कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

सुमित्रा जी के कटु अनुभवों से प्रभावित होते हुए अपने जीवन के कुछ ऐसे ही संवेदनशील अनुभवो को सांझा करते हुए शोधार्थी पूजा प्रजापति ने सभी विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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