Corona महामारी में मुकेश अंबानी ने 1 घंटे में कमाया इतमा पैसा जितना एक मजदूर 10000 साल में भी नहीं कमा सकता

Corona महामारी ने दुनियाभर में तबाही मचाई है। इस महामारी ने सभी को समान रूप से प्रभावित किया है, यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं।

इस वैश्विक महामारी ने गरीब और अमीर के बीच की खाई और बढ़ा दी है। महामारी के दौरान जहां अमीरों की संपत्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है वही गरीब लोगों के सामने आजीविका का संकट पैदा हुआ है।

इतना ही नहीं जहां मार्च 2020 के बाद महामारी और लॉकडाउन के दौरान पूंजीपंतियों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही थी वहीं दूसरी ओर अप्रैल 2020 में प्रति घंटे 1.7 लाख लोग बेरोजगार हो रहे थे।

अगर बात भारत की करें तो भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में महामारी के दौरान जितनी बढ़ोतरी हुई, उससे मनरेगा और स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है।

अगर आसान भाषा में हम आपको समझायें तो महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है। ऑक्सफैम एक वैश्विक संगठन है, जो गरीबी उन्मूलन के लिए काम करता है।

Corona ने बढ़ाई अमीर और गरीब के बीच की खाई


ऑक्सफैम ने कहा है कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 प्रतिशत बढ़ गई, जबकि इस दौरान करोड़ो .. लोगों के लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘इनइक्वालिटी वायरस’ में कहा गया, ”मार्च 2020 के बाद भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।

इतनी राशि का वितरण यदि देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में किया जाए, तो इनमें से प्रत्येक को 94,045 रुपये दिए जा सकते हैं।

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इस रिपोर्ट में आय की असमता का जिक्र करते हुए बताया गया कि महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे, या मुकेश अंबानी ने जितनी आय एक सेकेंड में हासिल की, उसे पाने में एक अकुशल मजदूर को तीन साल लगेंगे।
रिपोर्ट को विश्व आर्थिक मंच के ‘दावोस संवाद’ के पहले दिन जारी किया गया। कोरोना 100 साल का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है।
इसके चलते 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ।

ऑक्सफैम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर ने कहा, ”इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवस्था से कैसे सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौरान सबसे धनी लोगों ने बहुत अधिक संपत्ति अर्जित की, जबकि करोड़ों लोग बेहद मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे हैं.”

Corona महामारी पर दुनिया के 295 अर्थशास्त्रियों ने दी राय –


बेहर ने कहा कि शुरुआत में माना गया था कि महामारी सभी को समान रूप से प्रभावित करेगी, लेकिन लॉक़डाउन होने पर समाज में विषमताएं खुलकर सामने आ गईं।

रिपोर्ट के लिए ऑक्सफैम द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय दी, जिसमें जेफरी डेविड, जयति घोष और गेब्रियल ज़ुक्मैन सहित 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महामारी के चलते अपने देश में आय असमनता में बड़ी या बहुत बड़ी बढ़ोतरा का अनुमान जताया।

भारत में इन उद्योगपतियों की संपत्ति बढ़ी –


रिपोर्ट के मुताबिक मुकेश अंबानी, गौतम अडाणी, शिव नादर, सायरस पूनावाला, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, सुनील मित्तल, राधाकृष्ण दमानी, कुमार मंगलम बिरला और लक्ष्मी मित्तल जैसे अरबपतियों की संपत्ति मार्च 2020 के बाद महामारी और लॉकडाउन के दौरान तेजी से बढ़ी. दूसरी ओर अप्रैल 2020 में प्रति घंटे 1.7 लाख लोग बेरोजगार हो रहे थे।अरबपतियों की संपत्ति के मामले में भारत छठे पायदान पर-


रिपोर्ट के भारत केंद्रित खंड में बताया गया, ”भारतीय अरबपतियों की संपत्ति लॉकडाउन के दौरान 35 प्रतिशत बढ़ गई. भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया।

भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में महामारी के दौरान जितनी बढ़ोतरी हुई, उससे मनरेगा और स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है।”

असंगठित क्षेत्र पर कोरोना की ज्यादा मार –

ऑक्सफैम ने कहा कि महामारी और लॉकडाउन का अनौपचारिक मजदूरों पर सबसे बुरा असर पड़ा।
इस दौरान करीब 12.2 करोड़ लोगों ने रोजगार खोए, जिनमें से 9.2 करोड़ (75 प्रतिशत) अनौपचारिक क्षेत्र के थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि इस संकट के चलते महिलाओं ने सबसे अधिक कष्ट सहा और ”1.7 करोड़ महिलाओं का रोजगार अप्रैल 2020 में छिन गया।
महिलाओं में बेरोजगारी दर लॉकडाउन से पहले ही 15 प्रतिशत थी, इसमें 18 प्रतिशत की और बढ़ोतरी हो गई।
इसके अलावा स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी होने की आशंका भी जताई गई है।

 

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