BY- पुनीत सम्यक
जिस रफ़्तार से देश में कवि बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से देश बहुत जल्द कविगुरु जरूर बन जायेगा।
इन कवियों की कविताएं अपने आप में मिसाइल हैं..इनको पढ़ कर लगता है क्यों अंग्रेजों ने हमें सपेरों का देश कहा होगा। क्यों किसी फिरंगी ने कहा होगा कि तुम्हारा साहित्य हमारे साहित्य के एक अलमारी के बराबर भी नही है।
कल्पना का कहीं न कहीं सच से जुड़ाव जरूर होता है..और यही जुड़ाव कविता की नींव होती है। इसी नींव पर आप कल्पना के घोड़े दौड़ा सकतें हैं, इसके इतर नहीं।
पर इन कवियों प्रेमपरलाप और प्रेमिका पर ऐसी ऐसी कविताएं की जिनका सच के साथ कोई जुड़ाव नहीं। पूरी जिंदगी एक किस को तरसते वाले भी चुम्बन, प्रेमपरलाप पर हजारों कविताएं लिख सकते है।
लिख छोड़ो वो अभी तुम्हे अपने वीडियो के लाइक दिखा सकतें है, यह बात और है कि खुद कभी प्रेम नही पड़े, सब कल्पना है इतनी कोरी कल्पना जितना देश में विकास की परिकल्पना है।
दूसरे ही पल वह सामाजिक चिंतन, राजनेताओं पर टिप्पणी करने में भी रवीश के गुरु दिखेगें। श्रंगार रस के साथ सामाजिक चिंतन का इतना अनूठा मटर पनीर और कहीं न मिलेगा।
कोई चर्चा क्या बिना राजनीति के आधार के आजकल आप कर रहे हैं ?? याद करियेगा किसी अनजान से आप बिना राजनीति के कब बात किये थे ?? आटो की दस मिनट की यात्रा में आप दस बार किसी न किसी राजनेता को जरूर गरियातें है, उस पर अपना दिल दिमाग जरूर खर्च करतें हैं और ऐसा ही आप अपने रिश्तेदारों, घर परिवार में भी करतें हैं।
कविता का जन्म इस तरह नहीं होता, कविता उस मवाद की तरह है जो बिना घाव या बिना घाव के पके नहीं निकलती और हां मवाद निकले घाव में आराम भी नहीं मिलता। ऐसी के कमरे में और हीटर के आगे बैठ कर कविता नहीं फूट सकती। जयशंकर कभी ऐसे आंसू, कामायनी नहीं लिख पाते जो वक्त उनके साथ बेरहमी न करता। दिनकर, निराला, मुंसी ऐसे नही बनता कोई कुर्बानी देनी पड़ती है और क़ुरबानी हमेशा उसी की दी जाती है जो सबसे ज्यादा प्यारा होता है।
जब तक कुछ गंवाया नहीं प्रेम नहीं किया तब तक कविता नहीं लिख सकते… यहां सब शब्दों का खेल है।