प्रवासी मजदूरों की इस हालत के लिए असल में कौन है जिम्मेदार?

BY – युधिष्ठिर प्रसाद

कोरोना देश और प्रदेश की सरकारों के लिए दिन-प्रतिदिन नई समस्या पैदा कर रहा है। और पुरानी समस्याओं को उजागर भी कर रहा है। इस महामारी के दौरान लोगों की जिन्दगी बदल गई है, अर्थव्यस्था तहस-नहस हो गई है। कोरोना की सबसे बड़ी मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है, जिनका रोजगार तो छिन ही गया है इसके अलांवा तमाम लोगों को अपनी जिन्दगी से भी हाथ धोना पड़ा है।

इस कोरोना महामारी ने देश के बदहाल सिस्टम को सबकी ऑंखों के सामने ला खड़ा किया है चाहे वह चिकित्सा व्यवस्था हो, यातायात सुविधा या फिर पुलिस का क्रूर चेहरा। फिर भी सरकार के नुमाइंदों को इससे सीख नहीं मिलती। वे तो सिर्फ राजनीतिक चश्में से ही हर घटना को देखते हैं। उनके लिए लोगों की जिन्दगी सिर्फ आंकड़ों में आंकी जाती है। इसका ताजा उदाहरण औरैया में हुई दुर्घटना में साफ-साफ दिखाई देता है। किस तरह से लाशों और घायलों को एक साथ डीसीएम में डालकर ले जाया जा रहा था। उस समय वहां का जिला प्रशासन क्या कर रहा था, यह तो उसी की जिम्मेदारी थी। किसी भी आपात स्थिति में देश स्तर पर प्रधानमंत्री, प्रदेश स्तर पर मुख्यमंत्री और जिला स्तर पर जिला मजिस्ट्रेट की मुख्य भूमिका होती है।

यह भी पढ़ेंः योगी सरकार ने रोजगार देने के नाम पर समाप्त कर दिए श्रमिकों के अधिकार

प्रवासियों के पलायन के दौरान हुई मौतों की घटनाओं के बाद भारतीय रेलवे ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाना तो शुरू कर दिया है, लेकिन मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। 25 मई को बिहार के मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर एक छोटा सा बच्चा अपनी मॉं के ऊपर पड़ी चादर को हटाकर उसे जगाना चाहता है। लेकिन उसे क्या पता कि जिस मॉं को जगाने का प्रयास वो कर रहा है वो अब कभी नहीं जागेगी। गुजरात से मधुबनी को जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन में इस महिला की मौत हो गई थी। इसी ट्रेन में एक बच्चे की भी मौत उसी दिन हो गई थी। ऐसी एक और घटना  वाराणसी के मड़ुवाडीह रेलवे स्टेशन पर दिखी, जब श्रमिक स्पेशल ट्रेन रूकी तो उसमें दो व्यक्तियों की लाश मिली। इस तरह की तमाम घटनाएं रोजाना हो रही हैं कुछ की खबरें आती हैं तो कुछ उनकी मौत की गुमनामी में खो जाती हैं।

पिछले दिनों दिल्ली जयपुर हाईवे पर एक आदमी का वीडियो सड़क पर मरे हुए जानवर का मांस खाते हुए वायरल हुआ था। इसके अलांवा छत्तीसगढ़ के एक क्वारंटीन सेंटर पर पेपर पर खाना खिलाने का वीडियो सामने आया था। ये सारी घटनाएं मानवता को शर्मसार तो करती हैं, लेकिन इससे किसी को क्या लेना। इसी तरह की घटनाओं को देखकर स्वामी विवेकानन्द का एक कथन याद आ रहा है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार मानूंगा, जो उनके बल पर शिक्षित तो हुआ लेकिन अब वह उनकी ओर ध्यान नहीं देता।”

इस कोरोना काल में राजनीति अपने चरम पर है, कभी बस को लेकर कभी ट्रेन को और कभी आंकड़ों को लेकर। हाल ही में आये यूपी सरकार  के आंकड़ों के अनुसार करीब 25 लाख प्रवासी लोग यूपी वापस आ चुके हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। उनके अनुसार महाराष्ट्र से यूपी आये कुल प्रवासियों में से  75 फीसदी प्रवासी कोरोना से संक्रमित हैं।

यह भी पढ़ेंःCOVID-19: जुलाई अंत तक भारत में कोरोना वायरस के मामले चरम पर होंगे

इस समय सबसे ज्यादा चर्चा प्रवासियों के रोजगार को लेकर भी है। यूपी में सभी प्रवासियो को रोजगार देने की बात योगी सरकार कहती रही है। यदि इतना ही आसान था रोजगार देना तो पिछले सालों में ये प्रयास क्यों नहीं किए गये।

बिहार सरकार भी रोजगार के विषय पर जाकर फंस गई है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 8.34 लाख श्रमिकों को काम देने के लिए करीब 4 लाख योजनाओं पर काम शुरू करने का दावा किया है। दावा करना आसान है लेकिन हकीकत क्या है ये तो पता चल ही जायेगा।

प्रवासियों के पलायन के लिए हर वह सरकार जिम्मेदार है जिसने उस प्रदेश में शासन किया है जिस गृहराज्य में मजदूर वापस आ रहे हैं। चाहे वह उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल या राजस्थान हो।

देश के तमाम राज्य रोजगार देने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम पर श्रम कानून में बड़े बदलाव किए हैं। ऐसे कानूनों में बदलाव मजदूरों की असुरक्षा और शोषण को बढ़ावा दे सकते हैं।

कुल मिलाकर इस चुनौतीपूर्ण समय में सरकार को समस्याओं और अव्यवस्था को देखकर बड़े बदलाव की जरूरत है। यह बदलाव रोजगार, चिकित्सा, यातायात और प्रशासन के क्षेत्र में बेहद जरूरी है।

यदि अब भी सुधार नहीं होंगे तो भविष्य में विकास की बात करना बेमानी होगी।

 

About Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *