पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सतलज-यमुना लिंक नहर को लेकर केंद्र सरकार को एक चेतावनी भरा संदेश दिया है। उन्होंने दावा किया है कि यदि यह परियोजना आगे बढ़ती है तो पंजाब की आंतरिक स्थिति बिगड़ सकती है।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि यदि यह योजना आगे बढ़ती है तो राष्ट्र की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकती है। गौरतलब है कि पंजाब की लगभग 425 किमी लंबी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी हुई है।
क्या है आखिर विवाद?
सतलज और यमुना नदी जोड़ने के लिए एक 214 किलोमीटर की नहर बनाई जा रही है। जिसके माध्यम से पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को पहुंचाने का काम किया जाएगा।
आइए जानते हैं आखिर कब क्या हुआ?
पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर 1966 से ही विवाद शुरू हो गया था। पंजाब और हरियाणा दो अलग राज्य बनने के बाद पानी को लेकर काफी बवाल इसलिए शुरू हो गया क्योंकि ज्यादातर नदियां पंजाब में चली गईं।
1976 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसके अनुसार पंजाब के कुल 15.85 मिलियन एकड़ फुट पानी में से पंजाब और हरियाण को 3.5-3.5 में बांट दिया गया। जो पानी बचा उसे राजस्थान, दिल्ली और जे ऐंड के को दे दिया गया।
पंजाब सरकार को यह फैसला मंजूर न हुआ और वह सुप्रीम कोर्ट चली गई। फिर 1981 में पुनः एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिसमें पंजाब को 4.22 एमएएफ और हरियाणा को 3.5। इस समझौते में पानी को भी बढ़ा दिया गया और अब 15.85 की जगह 17.17 एमएएफ कर दिया गया।
इस समझौते के बाद पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट से केस वापस ले लिया। समझौता होने के बाद पंजाब में स्थिति काफी बिगड़ गई। अकाली दल ने इसके खिलाफ एक धर्म युद्ध मोर्चा खोल दिया। 1982 में जब इंदिरा गांधी ने कपूरी में सतलज-यमुना लिंक निर्माण कार्य का उद्घाटन किया तो अकाली दल ने जमकर विरोध किया।
निर्माण कार्य शुरू हो गया था लेकिन फिर अचानक इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और एक बार फिर इसको बंद करना पड़ा। इंदिरा के बाद राजीव गांधी ने इसपर काम करने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए।
1985 में राजीव गांधी और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल ने न्यायाधिकरण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। और इसके बाद अब आतंकवादियों ने 20 अगस्त 1985 को हरचंद सिंह की हत्या कर दी।
सतलज-यमुना लिंक नहर परियोजना निर्माण में काम कर रहे इंजीनियरों की भी हत्या कर दी। जिसके बाद इस परियोजना के कार्य को रोक दिया गया। अब तक करीब 85 फीसदी काम हो चुका था।
पंजाब समझौता क्यों नहीं करना चाहता?
दरअसल पंजाब में मुख्यतः गेहूं और धान की फसल के साथ गन्ने की फसल उगाई जाती है। इन फसलों के लिए पानी की काफी मात्रा की आवश्यकता होती है।
ज्यादा मात्रा में पानी के दोहन के कारण पंजाब गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार फसल के लिए यहां करीब 79% भूमिगत जल का दोहन किया जाता है।
यही कारण है कि पंजाब इस जल समझौते के खिलाफ है। वह नहीं चाहता कि नहर के द्वारा वर्तमान रूप में पानी का बंटवारा हो। पंजाब चाहता है कि नदियों का वैज्ञानिक तरीके से आकलन हो।