स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में यूपी सबसे ख़राब है तो क्या हुआ यहाँ तो धर्म की राजनीति होती है

 BY- रवीश कुमार

नीति आयोग ने योगी जी के तमाम दावों पर पानी फेर दिया है। स्वास्थ्य सूचकांकों के मामले में यूपी का प्रदर्शन देश में सबसे रद्दी है। उसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का रद्दी है। कुल मिलाकर हिन्दी प्रदेश के इस बड़े हिस्से में स्वास्थ्य की हालत रद्दी बनी हुई है जिसे आधिकारिक ज़ुबान में ख़राब कहा गया है।

हाल के दिनों में हमने यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं पर एक प्राइम टाइम किया था। उसमें अमर उजाला में छपी खबरों और अपने सहयोगियों की रिपोर्ट शामिल की थी। कई ज़िले में कई गंभीर बीमारियों के डॉक्टर नहीं हैं। कहीं कहीं तो पाँच पाँच साल से हार्ट के डॉक्टर नहीं है। फिर भी यूपी मस्त है।

इसी अक्तूबर महीने में नौ मेडिकल कॉलेज के लोकार्पण का विज्ञापन सारे अख़बारों को दिया गया। कुछ दिनों तक मोदी योगी की जोड़ी ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर इस तरह से बोलना शुरू किया जैसे लगा कि यूपी का चुनाव स्वास्थ्य को लेकर होगा।

लेकिन सबको पता है कि ये कॉलेज नाम के हैं। कुछ विभाग खुले हैं तो कुछ में डॉक्टर प्रोफ़ेसर नहीं हैं। पढ़ाने के लिए भी नहीं है और देखने के लिए भी नहीं। आप प्राइम टाइम का वो एपिसोड यू ट्यूब में देख सकते हैं।

इसी महीने सहारनपुर मेडिकल कॉलेज की प्रोफ़ेसर यास्मीन उस्मानी के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि मेडिकल कॉलेजों के शिक्षण के सारे पद भरे जाएँ। उन्हें दो मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने को कहा गया था जिनके बीच की दूरी 150 किलोमीटर है। उसके बाद क्या हुआ किसे पता है। ये सब यूपी को पता है। नीति आयोग लेट बता रहा है ।

यूपी या किसी भी हिन्दी प्रदेश में इन सब मुद्दों की कोई परवाह नहीं करता। जाति जाति के नेता घूम रहे हैं। यहाँ धर्म की राजनीति होती है। युवाओं को सनका दिया गया है। उन्हें अतीत का निर्माण करना है। अस्पताल का नहीं।

इसलिए मज़े मत लीजिए कि यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था रद्दी है। यूपी इसी में ख़ुश है। 24 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य के
पंद्रह करोड़ ग़रीब लोगों को एक किलो नून एक किलो तेल और एक किलो दाल मुफ़्त दिया जा रहा है ताकि जनता वोट के समय तक नून तेल के दाम को लेकर नाराज़ न हो सके।

यूपी के युवा भीतर से टूट गए हैं लेकिन पहले जाति की गोलबंदी और अब धर्म की गोलबंदी उनका गला घोंटती रहेगी। बस इनकी किसी तरह शादी हो जाए और बाराती में ग्लोबल ख़ानदान की शान के मुताबिक़ ख़र्चा पानी हो जाए।

एक दिन के लिए दुल्हा और उसके दोस्तों को लगना चाहिए कि जो बाइडन वही हैं। इस समाज को कौन बदलेगा। यही नहीं बदलना चाहता। नीति आयोग अपनी रिपोर्ट फाड़ के फेंक दे। उससे किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता। योगी जी ही नहीं मानेंगे कि उनके पाँच साल के कार्यकाल के बाद देश में सबसे रद्दी स्वास्थ्य व्यवस्था यूपी की है।

रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार

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