योगी सरकार ने रोजगार देने के नाम पर समाप्त कर दिए श्रमिकों के अधिकार


BY – FIRE TIMES TEAM


उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के प्रकोप से मजदूरों और प्रवासियों की वापसी तेजी से हो रही है। ऐसे में प्रदेश सरकार लोगों को रोजगार देने की बात करती रही है। पिछले दिनों सरकार ने पहले चरण में करीब 5 लाख लोगों को रोजगार देने का प्लान तैयार करने की बात कही थी। और इसके लिए उद्योगों को श्रम अधिनियमों में 3 वर्ष की छूट देने का फैसला किया है।

सरकार के अनुसार इससे औद्योगिक गतिविधियों और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिलेगी। औद्योगिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिए औद्योगिक निवेश के अवसर पैदा होना आवश्यक है।

यूपी के श्रम मंत्री ने कहा, “श्रमिकों की मूलभूत हितों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों में जो उनको संरक्षण प्राप्त है, वह यथावत रहेंगे। इनमें बंधुआ श्रम व उत्पादन अधिनियम 1976, भवन सन्निर्माण अधिनियम 1996, कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम (किसी आपात स्थिति में मजदूरों को मुआबजे से सम्बन्धित) व बच्चे या महिलाओं के नियोजन सम्बन्धित श्रम अधिनियम (गर्भावस्था और चाइल्ड लेबर लॉ)  सभी लागू रहेंगे।

वेतन अधिनियम के वेतन यथावत मिलते रहेंगे। वेतन संदाय अधिनियम 1936 की धारा -5 के तहत तय समय के अन्दर वेतन भुगतान भी लागू रहेगा।”

श्रम मंत्री के अनुसार यूपी में 38 श्रम कानून लागू हैं, लेकिन इस अध्यादेश के लागू होने के बाद किसी भी उद्योग के खिलाफ लेबर डिपार्टमेंट एनफोर्समेंट नियम के तहत कार्रवाई नहीं की जायेगी। अगले 3 साल तक श्रम विभाग का प्रवर्तन  दल किसी भी कारखाने में छापेमारी नहीं करेगा।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने इस अध्यादेश को मजदूरों के साथ विश्वासघात करार दिया है। और उन्होंने कहा, ” कोरोना के नाजुक समय में सरकार मजदूरों को राहत देने के बजाय अपना तानाशाही फैसला थोप रही है।”

निष्प्रभावी हुए कानूनों में मिनिमम वेज एक्ट, ट्रेड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, इक्वल रिम्यूनिरेशन ( समान पारिश्रमिक ) एक्ट, जर्नलिस्ट एक्ट, बोनस एक्ट, प्रोविडेन्ट फन्ड एवं   हेल्थ सिक्योरिटी से सम्बन्धित आदि कानून हैं। इस अध्यादेश के बाद साफ है कि उद्योग मालिकों की मनमानी बढ़ जायेगी।

इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। इसके लिए सरकार इसे राष्ट्रपति को भेजेगी।

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