BY- FIRE TIMES TEAM
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाया कि जेल में बंद कार्यकर्ता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के शोध छात्र उमर खालिद के फरवरी 2020 से अमरावती, महाराष्ट्र में दिए गए भाषण को “आतंकवादी कृत्य” नहीं कहा जा सकता है।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी आई, जिसने 24 मार्च, 2022 को उसकी याचिका खारिज करने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।
दो जजों की सिटिंग बेंच ने कहा, “भाषण आक्रामक है, लेकिन इसे यह आतंकवादी कृत्य नहीं बनाता है। हम इसे बहुत अच्छी तरह समझते हैं। यदि अभियोजन का मामला इस बात पर आधारित है कि भाषण कितना आक्रामक था, तो यह अपने आप में अपराध नहीं होगा। हम उन्हें (अभियोजन को) मौका देंगे।”
बेंच की अध्यक्षता जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर कर रहे हैं।
उमर खालिद के वकील ने तर्क दिया कि उमर द्वारा दिया गया भाषण एक “अन्यायपूर्ण कानून” (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के खिलाफ था और किसी भी तरह से भारतीय संविधान की संप्रभुता के खिलाफ नहीं था।
वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा उमर के खिलाफ आरोप “आतंकवादी हमले” के रूप में योग्य नहीं हो सकते हैं और भाषण में भाग लेने वाले लोग किसी भी तरह की हिंसा पर विचार या सोच नहीं रहे थे।
उमर खालिद की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमि
छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में दिए गए भाषण के संबंध में 13 सितंबर, 2020 को कठोर कानून गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया था। दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि उमर का भाषण एक उत्प्रेरक था। फरवरी 2020 के दिल्ली दंगे में 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए।
नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़की थी।
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