BY- BIPUL KUMAR
कोल्ट कम्पनी की इस पिस्टल को तो बहुत लोग पहचानते होंगे लेकिन बहुत सारे लोग 0.32 बोर की कोल्ट पिस्टल के भारत आने की कहानी नहीं जानते होंगे। अपने अंतिम समय में चंद्रशेखर आजाद उसी पिस्तौल से लड़ रहे थ और इसी से उन्होंने 15 राउंड फ़ायर किए, तीन पुलिस वालों को मारा और आख़िरी गोली से खुद शहीद हुए। लंबे समय तक उस पिस्तौल की किसी ने कोई खोज-खबर नहीं ली।
1970 के आसपास कुछ लोगों ने उसे तलाशना शुरू किया। इलाहाबाद के सरकारी मालखाने से पता चला कि वह पिस्तौल उस अधिकारी जिसने चंद्रशेखर आज़ाद को उस पार्क में घेरा था यानि नॉट बाबर को इंग्लैंड जाते समय भेंट में दे दी गई थी। तब नॉट बाबर से पत्राचार कर पिस्तौल की मांग की गई। इलाहाबाद के आयुक्त मुस्तफी ने नॉट बाबर को खत लिखा था।
नॉट बाबर ने कोई उत्तर नहीं दिया। इसके बाद भारतीय उच्चायोग से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया। इंग्लैंड में तैनात भारत के उच्चायुक्त ने नॉट बाबर से पिस्तौल लौटाने का आग्रह किया। कुछ ना-नुकुर के बाद नॉट बाबर पिस्तौल लौटाने को राजी हो गया, लेकिन उसने एक शर्त रखी। कहा कि उसके पास भारत सरकार अनुरोध पत्र भेजे, जिसमें आजाद के शहादत स्थल पर आज़ाद की मूर्ति लगाकर उसकी फ़ोटो भेजे तभी वो आज़ाद की पिस्तौल वापस करेगा।
ऐसा किया गया तब जाकर उस अधिकारी ने वो पिस्तौल इंडिया को वापस की। मतलब वो अंग्रेज अधिकारी जानता था कि हम भारतीय अपने देश के असली हीरोज़ के लिए कितने सीरीयस हैं। पिस्तौल को नाम दिया था ‘बमतुल बुखारा’।
जी हां! चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पिस्तौल को बमतुल बुखारा नाम दिया था। इसका पिस्तौल का निर्माण अमेरिकन फायर आर्म बनाने वाली कोल्ट्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने 1903 में किया था। ये प्वाइंट 32 बोर की हैमरलेस सेमी आटोमेटिक पिस्टल में आठ बुलेट की एक मैगजीन लगती थी। इसकी मारक क्षमता 25 से 30 यार्ड थी। अभी चाहें तो इलाहाबाद संग्रहालय के आगंतुक अब स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की उस पिस्तौल के साथ एक सेल्फी ले सकते हैं।
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