BY- FIRE TIMES TEAM
मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि कोरोनोवायरस लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का जो समाधान किया गया है उस पर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
कोर्ट के निर्देश में कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति एक मानव त्रासदी है।
अदालत ने महाराष्ट्र के सांगली जिले में फंसे लगभग 400 तमिल मजदूरों के वापस लाने की मांग करने वाली हेबियस कॉर्पस याचिका (habeas corpus petition) पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
जस्टिस एन किरुबाकरण और आर हेमलता की पीठ ने कहा कि सभी राज्यों की सरकारों को सभी प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का समाधान करने के लिए आगे बढ़के काम करना होगा।
अदालत ने कहा, “प्रवासी मजदूरों को अपने घर जाने के लिए इस तरह पैदल चलते देखना वो भी अपने परिवार (बीवी और छोटे बच्चों तथा बुजुर्ग माता पिता) के साथ काफी दुख की बात है।”
अदालत ने आगे कहा, “पिछले महीने मीडिया में दिखाई गई प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति को देखकर कोई भी अपने आँसुओं को नियंत्रित नहीं कर सकता है। यह एक मानवीय त्रासदी के अलावा कुछ नहीं है।”
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अदालत ने पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ट्रेन के नीचे आके मरने वाले 16 प्रवासी मजदूरों की मौत का विशेष संदर्भ दिया।
अदालत ने कहा, “प्रवासी मजदूरों के दुख और पीड़ा मीडिया में दिखाए जाने के बाद भी पिछले एक महीने से कुछ भी नहीं हुआ है, क्योंकि राज्यों के बीच कोई मिला-जुला प्रयास नहीं किया गया।”
न्यायाधीशों ने केंद्र से पूछा कि क्या प्रत्येक राज्य में प्रवासियों के संबंध में कोई डेटा है, अगर है तो यह उन्हें पहचानने और उन्हें घर पहुंचाने में मदद करने योग्य होगा।
न्यायाधीशों ने अब तक हुई प्रवासी मजदूरों की मौतों की संख्या का भी डेटा मंगा है, और यह भी डेटा मंगा की जिन मजदूरों की मौत हुई वे किस प्रदेश के थे।
इसके अलावा यह भी पूछा कि क्या उनके परिवार वालों को किसी तरह का मुआवजा देने की कोई योजना बनाई गई है या नहीं।
इसके अलावा, अदालत ने भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाने वाली श्रमिक विशेष रेलगाड़ियों द्वारा ले जाये गए प्रवासी मजदूरों का पूरा लेखा-जोखा भी मांगा, और यह भी पूछा कि क्या सरकार की योजना बाकी बचे प्रवासी मजदूरों को भी ले जाने की है जो अभी भी फंसे हुए हैं।
अदालत ने इन सवालों के जवाब देने के लिए केंद्र और राज्य को 22 मई तक का समय दिया।
मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के तुरंत बाद, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी ने प्रवासियों से अपील की कि वे “शिविरों में रहें और सरकार को उनकी मदद करने दें।”
उन्होंने कहा, “हम आपको गाड़ियों द्वारा वापस भेजने के लिए अन्य राज्यों के साथ बात कर रहे हैं तब तक सभी लोग शिविरों में रहें। हम ट्रेन का किराया और यात्रा का खर्च भी उठाएंगे।”
लॉक डाउन शुरू होने के बाद देश भर के शहरों में कारोबार बंद होने के कारण, प्रवासियों की विशाल संख्या ने लंबी यात्रा शुरू की। कुछ की रास्ते में ही मौत हो गई जबकि कुछ अन्य दुर्घटनाओं में मारे गए।
पिछले महीने, केंद्र ने प्रवासी मजदूरों तीर्थयात्रियों, पर्यटकों, छात्रों और “अन्य व्यक्तियों” के आवागमन के लिए व्यवस्था की।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस कदम पर प्रवासी श्रमिकों को भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि “अदालत के लिए यह निगरानी करना असंभव है कि कौन पैदल चल रहा है और कौन नहीं।”
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