दलित समाज को सोचना पड़ेगा आखिर उनके पिछड़ेपन का मूल कारण क्या है?

BY- VIRENDRA KUMAR

उत्तर प्रदेश के दलितों का खासकर चमारों का मन चेतन इस स्तर तक गुलामी से भरा हुआ है, इसी वजह से इतिहास में वह लोग सवर्णो की गुलामी किए और अभी वह मायावती की गुलामी कर रहे हैं। अगर आप मायावती पर प्रश्न उठा दो, तो वो लोग तर्क से सोचने या तार्किक सवाल जवाब करने के बजाय सीधा आपको गाली देंगे, वह भी ऐसी गाली की सभ्य समाज शर्माकर आगे प्रत्युत्तर ही ना दें। यूपी के चमारों की यही मानसिक अवस्था दिखाती है क्यों वो लोग हजारों साल गुलाम रहे सवर्णो के?

कहीं न कहीं इस समाज के चेतन के अंदर ही प्रॉब्लम है, ये सवर्णो को या दूसरों को दोष देते हैं कि उन्होंने हमारा शोषण किया, हो सकता है वो थोड़े बहुत जिम्मेदार हो लेकिन उससे ज्यादा जिम्मेदार ये दलित खुद हैं। आजादी के 70- 75 वर्षों में भी इनकी चेतना इस स्तर पर नहीं जा पाई है कि यह लोग मेंनस्ट्रीम की सोसाइटी में शामिल हो पाए, इनकी सोच वही पुराने ढर्रे की है इनका इतिहास देखें तो यह 17 में 18 में शताब्दी की बात करते हैं। साहित्य भी उसी 17 -18 शताब्दी के जवाब में ही लिखते हैं, तर्क भी इनका वहीं से निकल कर आता है।

यहां तक कि बाबा साहब अंबेडकर ने भी यही कहा था, की व्यक्ति पूजा या अधिनायकवाद दलित समाज के हितों के खिलाफ है क्योंकि व्यक्ति कभी भी समाज के हितों के साथ समझौता कर सकता है और इसीलिए उन्होंने कभी भी अधिनायकवाद का समर्थन नहीं किया।

अंबेडकर के अलावा कांशीराम साहब की भी मूल सीख यही थी, इसके लिए उन्होंने एक किताब भी लिखा है “चमचा युग” उत्तर भारत के दलित उस किताब चमचा युग का मूल उद्देश्य तो नहीं समझ पाए, लेकिन सुनी सुनाई बातों पर यकीन करते हैं और सवाल उठाने वालों पर गाली देते हैं ।

कांशीराम साहब अपने उस चमचा युग में ये कहा था ‘कि दलित बहुजन समाज को किसी का चमचा बनने की जरूरत नहीं है! किसी व्यक्ति, किसी समाज या किसी पार्टी का चमचा बनने की जरूरत नहीं है ! दलित समाज को चमचा बनने की जरूरत है तो अपने उद्देश्यों का, क्योंकि अपने लक्ष्यों की, अपने सामाजिक उद्देश्यों की, अगर दलित समाज अपने उद्देश्यों के लिए किसी के साथ तालमेल बिठाता है तभी वह सफल हो सकता है ना की किसी व्यक्ति के चमचे बनने से उनका हित हो सकता है।’

आज कांशीराम साहब के उसी सीख को अगर हम आज के परिवेश में देखें तो उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश के दलित मायावती के चमचे बने हुए हैं, जो कांशी राम साहब की मूल सीख थी उसके ही खिलाफ। दिक्कत यही है कि दलित लोग उस मूल किताब को पढ़ेंगे नहीं और सुनी सुनाई बातों पर यकीन करते हुए सवाल जवाब करने वालों को गाली से नवाजते फिरेंगे।

दलित समाज को फिर से सोचना पड़ेगा आखिर उनके पिछले पिछड़ेपन का मूल कारण क्या है? जब आपको संविधान ने इतना सारा कुछ दिया है उसके बावजूद भी आज आप पीछे होते जा रहे हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है दलित समाज को तार्किकता से इस पर मंथन करना पड़ेगा!

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