कभी कभी जब खुद को कमजोर पाइये तो क्या करना चाहिए?

BY- पुनीत सम्यक

जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि आप अपनी परेशानियां कहीं कह नहीं पाते। परेशानी छोटी हो बड़ी ये मैटर नहीं करता, बस इतना सा फील होता है कि किसी को बताने से कुछ हल नहीं निकलने वाला।

कभी कभी कुछ समझ नहीं आता। सब शून्य हो जाता है। रोशनी आंखों में गड़ती है और अंधेरा चुभने लगता है। मैं कभी-कभी खुद से हार जाता हूँ। भीड़ में, महफ़िल में, सबकी नज़रों में होने के बावजूद खुद को सबसे अकेला पाता हूँ।

मूड। मूड बहुत खराब होता है यार। प्रॉब्लम जब सलूशन से बढ़ जाए तो आदमी एकदम विकलांग हो जाता है नई? न खुद पे हँसा जाता है न परिस्थिति पे रोया। शाम से भोर तक आंखे उस घूल से लतपथ पंखे को निहारती रहती हैं। एक टक्क़। समय कटता भी नहीं है और वक़्त बीतता जाता है।

कभी-कभी हार जाने के बाद, हार न मानना भी एक मलाल ही होता है। हार न मान पाना मजबूरी होता है क्योंकि जिंदगी जीने के लिए आप हार ही नहीं सकते। बस लड़ सकते हैं। जख्मी हो सकते हैं। खुद को चोट पहुँचा सकते हैं और ये सब आप मुस्कुराते हुए मैनेज भी कर सकते हैं। जब जीत नहीं सकते तो कम से कम लड़ तो सकते हैं।

बचपन में मुझे स्कूल की परीक्षाओं से डर लगता था, डर लगता था उन रिश्तेदारों से जो 13 का पहाड़ा पूछ लेते थे। या ये पूछ लेते थे कि सतहत्तर, अठत्तर और उनहत्तर में सबसे बड़ा कौन है? मुझे डर लगता था उन लोगों से जो मुझसे कर्नल और लेफ्टिनेंट की स्पेलिंग पूछ लेते थे, या पूछ लेते थे राम का शब्द रूप या कोई लृट लकार।

अब मुझे डर नहीं लगता, गणित के सवालों से भी नहीं, अंग्रेजी की स्पेलिंग से भी नहीं, संस्कृत के श्लोकों से भी नहीं, डर लगता है तो बस इस बात से के कहीं ये डर न लगना न खत्म हो जाए। मैं किसी कहानी रोमैंटिक या इमोशनल सीन नहीं बनना चाहता। न ही किसी फ़िल्म का सस्पेंस वाला क्लाइमैक्स जिनमें दोस्त आके बता दें के “करीना कपूर” भूत है।

न ही कोई गणित का पाइथागोरस फार्मूला जिसमें कर्ण हमेशा आधार के वर्ग और लंब के वर्ग के योगफल के वर्गमूल के बराबर होता हौ, या प्रकाश संष्लेषण की कोई सांस लेने वाली थ्योरी। न ही किसी प्रेम कहानी की विरह या किसी वीर रस की कविता का सार।

मैं होना चाहता हूं अनंत शून्य। खुद से परे। भावनाओं से रहित। किसी विस्मयबोधक चिन्ह की तरह नही, पूर्ण विराम की तरह। समाप्ति की तरह। अंत की तरह, अनंत की तरह। एक छोर की तरह। प्रवाह की तरह। आसमान की तरह। बस मौन हो जाना चाहता हूँ।

इस सब से परे एक शक्ति है जो मुझे हमेशा हिम्मत देती रहती है। कैसी भी परिस्थिति में। हर हाल में। बुरे से बुरे वक़्त में। हर जगह। बस एक शक्ति। एक वाक्य..

“जो होगा, देखा जाएगा!”

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