2014 में मोदी सरकार बनने के पश्चात आदर्श ग्राम योजना शुरू की गई थी जिसके तहत सांसदों को गांव गोद लेकर उनका विकास करना था। 6 साल बीत जाने के पश्चात भी न तो गांवो का समुचित विकास ही हुआ और न ही सांसदों ने अन्य गांव गोद लिए।
सामान्य समीक्षा मिशन के तहत किये गए अध्ययन के अनुसार आदर्श ग्राम लगभग जस के तस ही हैं। इसमें बताया गया है कि यह योजना वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाई है।
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत आवंटित धन को भी नहीं खर्च कर पाए हैं। इसके अलावा अनेक ऐसी पंचायत हैं जहां कार्य क्षेत्र धन की कमी के कारण नहीं हो पा रहा है। अभी भी ऐसे कई गांव हैं जो आदर्श ग्राम हैं लेकिन फिर भी उन्हें खुले में शौच से मुक्त नहीं किया जा सका है। आपको बता दूं कि खुले में शौच से मुक्त के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक अन्य योजना भी चल रही है।
2020 का साल खत्म होने को है लेकिन सांसद 2016 की स्थिति में भी नजर नहीं आते। आपको पता होना चाहिए कि 2016 तक प्रत्येक सांसद को एक गांव को आदर्श ग्राम के तहत विकसित करना था। उसके बाद 2019 तक तीन और फिर 2024 तक पांच आदर्श ग्राम विकसित किये जाने थे।
मतलब यदि एक सांसद सही मायने में गांव का विकास करता तो 2024 तक कुल मिलाकर हज़ारों गांवों का कल्याण हो जाता। लेकिन अफसोस कि हमारे देश की राजनीति ही ऐसी है जहां काम पर वोट ही नहीं मिलता।
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योजना की गति का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पांचवें चरण में अभी तक सिर्फ सात ग्राम पंचायतों का ही चयन किया गया है। अब यदि ऐसी स्थिति है तो या तो इस योजना को ही समाप्त कर देना चाहिए या फिर इसकी प्रगति के लिए प्रधानमंत्री को आगे आकर कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए।
जिस प्रकार से लॉकडाउन के बाद ग्रामीण भारत में प्रवासी मजदूरों का आगमन हुआ है उसके लिए गांवों का विकास बेहद जरूरी है और उसके लिए आदर्श ग्राम योजना कारगर साबित हो सकती है। प्रधानमंत्री ग्रामीण भारत के विकास की इस समय बात भी काफी कर रहे हैं।