केरल के संत केशवानन्द भारती नहीं रहे, जानिए क्यों कहलाते हैं संविधान के रक्षक

BY – FIRE TIMES TEAM

केरल के निवासी संत और संविधान के मूल ढ़ांचे को निर्धारित करने वाले फैसले के मुख्य याचिकाकर्ता रहे केशवानंद भारती श्रीपदगवरू का इडनीर मठ में 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

केशवानंद भारती केरल राज्य के उत्तरी जिले कासरगोड में स्थित इडनीर मठ के महंत थे। वह हृदय रोग से पीड़ित थे, अगले हप्ते उनके हृदय के वाल्व का रिप्लेसमेन्ट होना था। लेकिन रविवार सुबह ही इस दुनिया से उन्होंने अलविदा कह दिया।

क्यों कहा जाता है उन्हें संविधान का रक्षक और क्या है पूरा मामला ?

आपने संविधान की किताबें पढ़ते वक्त केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला जरूर पढ़ा होगा। दरअसल इस मामले का फैसला 47 साल पहले 24 अप्रैल 1973 को आया था। जिसमेें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के मूल ढ़ाचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया था कि आखिर मूल ढ़ाचें में कौन-कौन सी चीजें आती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय-2 पर देश की सर्वोच्च अदालत इस तरह के फैसलों की समीक्षा के माध्यम से संविधान के मूल ढ़ाचे की अवधारणा को स्पष्ट करती रहेगी।

इस फैसले के बाद संत केशवानंद भारती को संविधान का रक्षक कहा जाने लगा। लेकिन जिस मामले को लेकर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था, वह विषय अलग था।

दरअसल, केरल के कासरगोड़ जिले में इडनीर नाम का एक हिन्दू मठ है। केशवानन्द भारती इसी मठ के वंशानुगत प्रमुख थे। उस समय केरल भूमि सुधार अधिनियम, 1963 में संशोधन के बाद बने कानून के तहत मठ की 400 एकड़ जमीन में से 300 एकड़ जमीन लोगों को खेती करने के लिए पट्टे पर दे दी गई।

केशवानंद भारती मठ प्रमुख होने के नाते भूमि-सुधार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गये। इसके अलांवा उन्होंने 29वें संविधान संशोधन को भी चुनौती दी थी। तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए केरल भूमि सुधार अधिनियम, 1963 के संविधान संशोधन कानून 1969 और 1971 को 9वीं अनुसूची में शामिल करवा दिया था।

असल में 9वीं अनुसूची में जो विषय शामिल किये जाते हैं, उस विषय को लेकर अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन केशवानंद भारती 29वें संविधान संशोधन को ही सही नहीं मानते हुए कोर्ट गये थे।

1973 में इस मामले के तहत यह सवाल उठा कि क्या संसद को संविधान के मूल ढ़ाचें में परिवर्तन का अधिकार है ? इस मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली। और 13 जजों की बेन्च ने चीफ जस्टिस एस. एम. सीकरी की अध्यक्षता में 7 : 6 की बहुमत से 703 पन्नों का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस पीठ में सुप्रसिद्ध न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना भी शामिल थे।

इस फैसले में कोर्ट ने कहा, “संसद को अनुच्छेद – 368 के तहत संविधान संशोधन करने की शक्ति जरूर है, लेकिन संविधान के मूल ढ़ाचें को नहीं बदला जा सकता। संविधान की प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और इसी पर पूरा संविधान टिका हुआ है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढ़ाचे के अन्तर्गत आती है।”

न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना ने कहा, “न्यायपालिका को संविधान संशोधन की समीक्षा करने और संविधान के मूल ढ़ाचें के सिद्धान्त के खिलाफ होने पर खारिज करने का अधिकार है।”

इस फैसले से मठ को तो कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन पूरे देश को इससे जरूर फायदा मिला। आपको बता दें कि इसी फैसले के दिन 24 अप्रैल, 1973 को सचिन तेंदुलकर का भी जन्म हुआ।

 

 

 

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