किस्तों में बढ़ाने के लिए मोदी जी का धन्यवाद; पिछले 15 दिन में पेट्रोल के दाम 9 रुपए 20 पैसे बढ़ गए हैं

BY: राजेंद्र शर्मा

हम पूछते हैं कि ये मोदी जी के विरोधी और कहां तक गिरेंगे! बताइए, मोदी जी के विरोध में एकदम अंधे ही हुए जा रहे हैं। विरोध के अंधे को सिर्फ काला ही काला नजर आता है। रौशनी दिखाई ही नहीं देती है।

अब मोदी जी ने पूरे तेरह दिन में, कुल ग्यारह बार में तेल के दाम बढ़ाए हैं और वह भी कुल आठ रुपया लीटर। पर मजाल है इनके मुंह से थैंक यू का एक बोल भी निकल जाए।

उल्टे इसकी हाय-हाय करने में लगे हैं कि तेल के दाम फिर बढ़ा दिए, पूरे आठ रुपये लीटर बढ़ा दिए। जैसे आठ रुपये कोई बहुत बड़ी रकम हो; जैसे आठ के आगे गिनती ही खत्म हो जाती हो। जैसे तेल के दाम आठ रुपये लीटर से ज्यादा बढ़ गए, तो आसमान गिर ही जाएगा।

अरे! और कुछ नहीं, तो पड़ौस में श्रीलंका से ही कुछ सीख लेते। हमें तो शुक्र मनाना चाहिए कि मोदी जी ने सिर्फ तेल के दाम बढ़ाए हैं। श्रीलंका की तरह इमर्जेंसी तो नहीं लगायी है और तेल के लिए बाजार में लंबी-लंबी लाइनें भी नहीं लगवाई हैं।

और दूसरी तरफ के पड़ौसी, पाकिस्तान की तरह, देश की सरकार पर रत्तीभर आंच भी नहीं आने दी है। तेल का दाम कितना भी बढ़ जाए, मोदी जी की सरकार टस से मस होने वाली नहीं है। और चाहे पब्लिक का पुर्जा-पुर्जा हिल जाए, पर सरकार अटल है। कम से कम ऐसे टिकाऊ शासन के लिए तो मोदी जी का थैंक यू बनता है!

पर मोदी जी कुछ भी करें, विरोधियों को सकारात्मकता दिखाई ही नहीं देती है। तेरह दिन में ग्यारह ही बार तेल के दाम बढ़े। यानी पूरे दो दिन का ब्रेक दिया। टीवी न्यूज की तरह छोटा सा ब्रेक नहीं, बीस फीसद से जरा सा ही कम ब्रेक। मोटे तौर पर हफ्ते में एक दिन का ब्रेक।

अब छ: दिन काम, एक दिन आराम; इससे ज्यादा छुट्टी क्या इंडिया अफोर्ड कर सकता है? विकसित देशों की तरह, हफ्ते में सिर्फ पांच दिन के काम से, अभी हमारा काम नहीं चल सकता है। हां! जब मोदी जी अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पांच ट्रिलियन डालर तक खींच ले जाएंगे, तब की तब देखी जाएगी।

फिर बात सिर्फ हफ्ते में एक दिन के ब्रेक की ही थोड़े ही है। बढ़ोतरी को जो छोटी-छोटी किस्तों में बांटकर पेश किया गया है, उसका क्या? कई लोग फिर भी अस्सी पैसे की बढ़ोतरी पर शोर मचा रहे हैं। लेकिन, यह जायज नहीं है। अव्वल तो अस्सी पैसे की बढ़ोतरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है।

उल्टे एक रुपए से भी पूरे बीस फीसद कम की बढ़ोतरी हुई। फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह अस्सी पैसे की बढ़ोतरी का नहीं, अस्सी पैसे की हदबंदी का मामला है। तेरह दिन में ग्यारह बार दाम बढ़ाए गए हैं, मगर मजाल है जो एक बार भी बढ़ोतरी ने अस्सी पैसे की बाउंड्री लांघी हो।

यहां तक कि एक दिन बढ़ोतरी किसी वजह से पचास पैसा और एक दिन तो पेंतीस पैसा पर ही अटकी रह गयी, पर मोदी जी ने तब भी बढ़ोतरी को अस्सी पैसे की बाउंड्री पार नहीं करने दी। साफ कह दिया कि तेल कंपनियों को घाटा होता हो तो हो, पर बढ़ोतरी की रोजाना की खुराक को, अस्सी पैसा से ऊपर हर्गिज नहीं जाने दिया जाएगा।

जोर का सही, पर झटका इस पब्लिक को धीमे से लगना चाहिए। पब्लिक की तकलीफ का इतना ख्याल रखने वाले मोदी जी क्या एक थैंक यू के भी हकदार नहीं हैं!

राजेन्द्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं।

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