लॉकडाउन के पहले चरण में यूपी में 48503 लोगों के खिलाफ 15378 एफआईआर


BY- राजीव यादव


  • सुप्रीम कोर्ट के सामने बड़ा सवाल कि क्या यह कार्रवाई वैधानिक
  • सरकार बताए कि उसकी लड़ाई कोरोना से है या नागरिकों से- रिहाई मंच

लखनऊ 19 अप्रैल 2020: रिहाई मंच ने कहा कि लॉक डाउन के नाम पर जिस तरह से उत्तरप्रदेश में 15378 प्रथम सूचना रिपोर्ट 48503 लोगों के विरुद्ध दर्ज की गई है वो बताती है कि शासन-प्रशासन कोरोना नहीं बल्कि अपने नागरिकों से ही लड़ रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे नागरिक को अपराधी घोषित करने की यूपी में कोई प्रतियोगिता चल रही है।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि सोशल मीडिया में ऐसे अनेक वीडियो सामने आए हैं जिनमें पुलिस द्वारा निर्ममता पूर्वक सड़क पर आने-जाने वालों की पिटाई की जा रही है। ऐसा किए जाने का कोई औचित्य नहीं है।

विदित हो कि उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि लॉक डाउन का उल्लंघन किया जाना ऐसा अपराध नहीं है कि उसके विरूद्ध सेक्शन 188 आईपीसी के अन्तर्गत कार्यवाही की जा सके।

याचिका के अनुसार सेक्शन 195 CrPC के अंतर्गत अदालत इसका संज्ञान नहीं ले सकती। पुलिस रिपोर्ट को अन्तर्गत सेक्शन 2 डी सीआरपीसी भी कंप्लेंट के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

याचिका के अनुसार दिल्ली में 23 मार्च 2020 से लेकर 13 अप्रैल 2020 के अन्तर्गत 848 FIR दर्ज की गई है। जबकि उत्तरप्रदेश में 15378 प्रथम सूचना रिपोर्ट 48503 लोगों के विरुद्ध दर्ज की गई है। इनको रद्द करने की प्रार्थना याचिका में की गई है।

याचिका में कहा गया है कि ऐसे हजारों मामलों का बोझ सरकार पर डाला जा रहा है जबकि आर्थिक रूप से राज्यों के समक्ष वित्तीय कमी है। ऐसे मामलों को अपराध की दृष्टि से न देखकर मानवीय दृष्टिकोण से देखा और समझा जाना चाहिए।

सेक्शन 188 के अन्तर्गत FIR दर्ज किया जाना संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का भी उल्लंघन है। मुमकिन हो सकता है कि लॉक डाउन का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के समक्ष ऐसे हालात बन गए हों कि वह किसी ज़रूरत, निराशा या जानकारी के अभाव में लॉक डाउन का उल्लंघन कर बैठा हो।

इसलिए इसको अपराध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। विदित हो कि योगी सरकार के द्वारा नेताओं और अन्य के खिलाफ लगभग 20000 मुकदमों को वापस ले लिया गया था, जो कि धारा 144 के उल्लंघन करने के कारण सेक्शन 188 के अन्तर्गत दायर किए गए थे। ऐसे मामले जुडिशल सिस्टम पर बोझ बन गए थे और दशकों से लंबित चल रहे थे।

राजीव यादव रिहाई मंच के महासचिव हैं।

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