BY- FIRE TIMES TEAM
कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन से सबसे अधिक मजदूर, किसान प्रभावित हुए हैं। कई खबरें ऐसी प्राप्त हुईं जिनमें आत्महत्या का कारण राशन न मिलना रहा।
राशन वितरण की स्थिति लॉकडाउन के बाद काफी बेकार साबित हुई है लेकिन उससे पहले भी करोड़ों लोग इससे महरूम थे।
ज्यां द्रेज़ और रीतिका खेड़ा जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरकार के इस वितरण प्रणाली से अभी भी करीब 10 करोड़ भारतीय वंचित हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश की कुल आबादी के 67% हिस्से को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से राशन मिल रहा है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र में 75% और शहरी क्षेत्र में 50% लोग शामिल हैं।

आपको मालूम होना चाहिए कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 121 करोड़ है। ऐसा अनुमान है कि वर्तमान समय में यह 137 करोड़ के करीब हो गई है।
और वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 80 करोड़ लोगों को कवर किया जा रहा है। इस तरह यदि 2020 की जनसंख्या को 67% अनुपात के रूप में देखें तो करीब 90 करोड़ लोग लाभान्वित होने चाहिए। इसका तात्पर्य है कि 10 करोड़ लोगों को राशन नहीं पहुंच पा रहा है।
अब यदि लॉकडाउन के समय की बात की जाए तो बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी चली गई है, मतलब अब वह भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर ही आश्रित हो गए हैं। और लॉकडाउन के बाद राशन वितरण में काफी खामियां भी देखने को मिली हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के लोग लाभान्वित होते हैं। मतलब कि राशन वितरण में खामियों से सबसे ज्यादा लोग यहां के ही प्रभावित होंगे।
यहां करीब 2.8 करोड़ राशन से वंचित होंगे। दूसरे नंबर पर बिहार है जहाँ के 1.8 करोड़ लोग राशन से वंचित हो सकते हैं।
दूसरी ओर जमीनी स्तर कोटेदार की मर्जी, घटतौली और कभी कभी राशन न दिए जाने जैसी समस्याओं का सामना भी जनता को करना पड़ता है।
ज्ञात हो कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपये किलो गेहूं, 3 रुपये किलो चावल की व्यवस्था की गई है।
खाद्यान की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।