1991 के बाद भारत की आर्थिक वृद्धि में सबसे बड़ी गिरावट इस साल


BY- FIRE TIMES TEAM


एक तरफ जहां नोटबन्दी और जीएसटी से भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही बुरे दौर से गुजर रही थी वहीं अब कोरोना ने दोहरी मार की है।

कोरोना के चलते पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट है।  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अशंका व्यक्त की है कि इस साल एशिया की आर्थिक वृद्धि दर शून्य रह सकती है। ऐसा हुआ तो यह पिछले 60 साल का सबसे बुरा प्रदर्शन होगा।

आईएमएफ ने अपने एक ब्लॉग में कहा है कि इस महामारी का एशिया प्रशांत क्षेत्र में गंभीर और अप्रत्याशित असर होगा। उसने कहा 2020 में एशिया की वृद्धि दर शून्य रहने की आशंका है।

वहीं आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर 1.9% रहने का अनुमान लगाया है। जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3% की वृद्धि होने का अनुमान लगाया है।

भारत की अर्थवयवस्था के लिए गोल्डमैन सैक्स ने भी 1.6% वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। जबकि विश्व बैंक ने 1.5 से 2.8% के बीच रहने की बात कही है।

इस स्थिति के बाद भी आईएमएफ ने भारत की अर्थव्यवस्था को सबसे तेजी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था में से एक माना है।

भारत की यह स्थिति 1991 के बाद से सबसे बुरी है। जानकारी के लिए आपको बता दूं 1991 में नरसिम्हा राव सरकार थी। आर्थिक रूप से वर्तमान सरकार काफी विफल हो गई थी।

मजबूर होकर नरसिम्हा राव सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपना ली थी। जिसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था इसी नीति के तहत चल रही है।

उदारीकरण नीति के तहत सरकार निजी कंपनियों को काफी सहूलियत देती है। अमेरिका भी इसी नीति के तहत चलता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था को कहीं न कहीं बढ़ावा देती हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था अभी मिश्रित रूप में है, जिसमें समाजवाद व पूंजीवाद दोनों के गुण मौजूद हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार मोदी सरकार इस व्यवस्था को पूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था की ओर ले जाने का प्रयास कर रही है।

 

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