BY- FIRE TIMES TEAM
एक तरफ कोरोना का संकट है तो दूसरी तरफ लॉकडाउन की मार। सबसे ज्यादा देश का गरीब मजदूर, किसान परेशान है। प्रवासी मजदूर का जीवन जीते करोड़ों मजदूर कोरोना के साथ लॉकडाउन की मार भी झेल रहे हैं।
बहुत सारी ऐसी खबरे आई हैं जिनसे यह पता चलता है कि लॉकडाउन ने भी कई लोगों की जिंदगी ले ली है। ताजा उदाहरण गुरुग्राम का है।
यहाँ रहने वाले बिहार के मुकेश की मजदूरी छिन जाने से परिवार के लिए खाने की मुसीबत आ पड़ी। चार बच्चे और पत्नी के साथ रह रहे मुकेश ने आखिरकार हार कर आत्महत्या कर ली।
उसकी पत्नी पूनम और उसके चार बच्चों के लिए लॉकडाउन सबसे बड़ा दर्द लेकर आया। 8 साल से पेंटिंग का काम करने वाले मुकेश के परिवार की किसी ने सहायता नहीं की।
बड़े बड़े बंगलो को नया रंग देने वाले मुकेश के लिए वहाँ से कोई सहायता नहीं आई। हरियाणा के सबसे महंगे शहर गुरुग्राम में किसी ने भी मदद नहीं की।
बिहार के मूल निवासी होने के कारण राशनकार्ड पर उन्हें गुरुग्राम में कोई सरकारी सहायता भी प्राप्त नहीं हो सकी। ये दिखाता है कि भले ही खट्टर सरकार कितने भी बड़े दावे क्यों न कर ले लेकिन जमीन पर उनका असर कम ही नजर आ रहा है।
मुकेश पहले पेंटिंग का काम करते थे लेकिन जब यह काम छूट गया तो वह मजदूरी करने लगे। पिछले पाँच महीने से वह दिहाड़ी मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे।
आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि 15 अप्रैल को ही कई मजदूर गुरुग्राम के वजीराबाद से अपने घर के लिए निकल पड़े थे। प्रशासन के मनाने पर वह माने थे। प्रशासन ने उनके राशन के लिए आश्वासन भी दिया था।
इसके बावजूद भी गुरुग्राम के कई सेक्टर में शिकायत मिली थी कि बिना राशनकार्ड के मजदूरों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।