BY- FIRE TIMES TEAM
लोकतांत्रिक देश में मीडिया को चौथे स्तंभ के रूप में दर्शाया गया है। बिना स्वतंत्र मीडिया के लोकतंत्र का मूल रूप ही गायब हो जाएगा। समय-समय पर सत्ता का दुरुपयोग प्रेस की स्वतंत्रता के हनन के लिए होता रहता है।
प्रत्येक सरकार चाहती है कि उसके खिलाफ कोई न बोले। यही कारण है कि पत्रकारों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
अभी हाल ही में कश्मीर के दो पत्रकारों पर यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। कश्मीर की स्थिति चिंताजनक भी है।
अब रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण ने और चिंता बढ़ा दी है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों के समूह में 142वें नंबर पर पहुंच गया है। पिछले साल वह इस लिस्ट में 140वें स्थान पर था।
द वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2020 यह बताती है कि 2019 में भारत में एक भी पत्रकार की हत्या नहीं हुई। इसके पिछले साल 2018 में 6 पत्रकारों की हत्या हुई थी।
रिपोर्ट कहती है कि एक भी हत्या न होने के बावजूद 2019 में लगातार स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया है। इनमें पत्रकारों के खिलाफ पुलिसिया हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमला, भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा बदले की हिंसा आदि शामिल हैं।
इस सूची में उत्तर कोरिया निचले पायदान पर तो वहीं एक बार फिर नार्वे पहले स्थान पर है। दूसरे नंबर पर फिनलैंड, तीसरे नंबर पर डेनमार्क, 11वें पायदान पर जर्मनी, 45वें पर अमेरिका तथा ब्राज़ील 107वें नम्बर पर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर की स्थिति के कारण भारत की रैंकिंग पर प्रभाव पड़ा है। अनुच्छेद370 के हटने के बाद कश्मीर में लागू किये गए प्रतिबंध के कारण पत्रकारों को खबरे करते हुए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
रिपोर्ट में 2019 के चुनाव जीतने के बाद दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार को लेकर भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि दोबारा सत्ता में आने के बाद पत्रकारों की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं।