गृह मंत्रालय ने डॉ.कफील खान पर लगा एन॰एस॰ए॰ तीन माह के लिए बढ़ाया


BY- FIRE TIMES TEAM


डॉ. कफील खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए एक भाषण को लेकर मंत्रालय ने उनके ऊपर लगी रासुका लगाई थी।

भड़काऊ भाषण को लेकर उनके खिलाफ सिविल लाइंस थाने में मामला दर्ज किया गया था। वह अभी मथुरा जेल में हैं।

आज 12-5-2020 को डॉ. कफील पर लगे एन॰एस॰ए॰ को तीन माह के लिये बढ़ा दिया गया है इसलिए वह अब 13 अगस्त 2020 तक जेल में ही रहेंगे।

जब पूरे देश में लॉकडाउन है तब डॉ. कफील पर एन॰एस॰ए॰ बढ़ाने का क्या औचित्या? कहीं डॉक्टर कफील राजनीति का शिकार तो नहीं हो रहे हैं?

आरोप है कि डॉक्टर कफील का 102 दिन से हृदय रोग विशेषज्ञ से ट्रीटमेंट अभी तक नहीं कराया गया जबकि उन्होंने कई बार जेल प्रशासन को बोला है।

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क्या है डॉ. कफील खान का पूरा मामला:  उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 10 अगस्त 2017 को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक ऑक्सीजन हादसा हुआ। इसमें ऑक्सीजन की कमी के चलते कई बच्चों की जान चली गई थी। एक ही हफ्ते में 60 बच्चों की मौत हो गई थी।

वर्ष 2017 के केवल छह महीने में 1201 बच्चों की मौत हो गई थी। जिसमें से 767 एनआईसीयू में और 434 पीआईसीयू में भर्ती थे। अगले साल 2018 के जून तक फिर से 681 बच्चों की मौत हो गई।

गोरखपुर न्यूज़ लाइन के अनुसार बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन 10 अगस्त ऑक्सीजन कांड के बाद से बच्चों की मौत के बारे में अधिकृत जानकारी नहीं दे रहा है। इस कारण मीडिया को सूत्रों पर निर्भर रहना पड़ा रहा है।

2017 में जब ऑक्सीजन कांड हुआ तब डॉ कफील खान बाल रोग विभाग के प्रवक्ता थे। वह एनएचएम के नोडल प्रभारी भी रह चुके हैं। उस समय उनकी मेहनत की वजह से कई बच्चों को बचाया जा सका था।

डॉ. कफील खान को एक हीरो की तरह पेश किया गया। लेकिन अचानक मेडिकल कॉलेज की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर डाल आला अधिकारी अलग हो गए।

उसके बाद उनको निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ पुलिस ने 409, 308, 120बी के तहत आरोप पत्र दाखिल किया। इन आरोपों के तहत डॉ कफील को उम्र कैद भी हो सकती है।

कफील की गिरफ्तारी के बाद मामला और गंभीर होता चला गया। जेल जाने के बाद गोरखपुर की विशेष न्यायाधीश 3 की अदालत ने 17 जनवरी 2018 को जमानत खारिज कर दी।

इसके बाद डॉ कफील ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने अप्रैल 2018 में जमानत दे दी। उनको दो सितंबर 207  में गिरफ्तार किया गया था जो करीब 7 महीने बाद जेल से छूटे।

बच्चों की हालत सुधारने वाले डॉक्टर को 7 महीने तक जेल में रखा गया और इस बीच लगातार बच्चे मरते रहे। यहां सवाल यह उठता है कि जब डॉक्टर कफील दोषी थे तो उनके जेल जाने के बाद भी बच्चे क्यों मरते रहे।

डॉक्टर को लेकर एक विभागीय जांच की गई जिसमें वह आरोप मुक्त हुए। उनको चिकित्सा लापरवाही, भ्रस्टाचार के आरोपों और हादसे के दिन अपना कर्तव्य नहीं निभाने के आरोप से मुक्त कर दिया गया।

15 पेज की रिपोर्ट में कहा गया कि डॉ कफील खान लापरवाही बरतने के दोषी नहीं हैं। उन्होंने घटना के दिन स्थिति को नियंत्रित करने के सभी प्रयास किये। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि डॉ कफील ने अपनी निजी क्षमता के अनुरूप ऑक्सीजन के सात सिलेंडर भी उपलब्ध कराए थे।

आरोप मुक्त होने के पहले ही डॉक्टर कफील करीब 9 महीने तक जेल काट चुके थे। विभागीय जांच में आरोपमुक्त होने के बाद भी उनके निलंबन को वापस नहीं लिया गया।

डॉक्टर कफील ने यह भी आरोप लगाया कि उनको पांच महीने तक अंधेरे में रखा गया। उन्होंने कहा स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को बचाने के लिए मुझे फंसाया गया। उन्होंने कहा मुझे जेल भेज दिया गया, जहां टॉयलेट में मुझे बंद कर दिया जाता था। जब मैं जेल से वापस आया तो मेरी छोटी बेटी ने मुझे पहचाना तक नहीं। मेरा परिवार 100-100 रुपये के लिए मोहताज हो गया था।

क्या किसी डॉक्टर को इन प्रकार से जेल में प्रताड़ित करना सही है जबकि उसने कई बच्चों को नई जिंदगी दी। जेल में कैदियों के साथ उचित व्यवहार करने के लिए कहा गया है फिर डॉक्टर के साथ क्यों नहीं हुआ। क्या उनको टारगेट किया जा रहा था।

जेल से बाहर आने के बाद डॉक्टर कफील ने बिहार के साथ-साथ अन्य राज्यों का दौरा किया और वहां झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों के बच्चों को फ्री में कैंप लगा कर देखा। हो सकता इनमें से कई बच्चों की जान भी डॉक्टर कफील की वजह से बची हो जो आगे चलकर देश की उन्नति में अपनी भागीदारी दें।

फिर अचानक उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव ने विभागीय जांच से अलग हटकर बयान दिया कि डॉक्टर कफील खान जिन बिंदुओं पर क्लीन चिट मिलने का दावा कर रहे हैं उन बिंदुओं पर जांच अभी पूरी नहीं हुई है।

इस साल 29 जनवरी को महाराष्ट्र से डॉक्टर कफील खान को गिरफ्तार कर लिया गया। उनको जमानत मिल चुकी थी लेकिन रिहाई से पहले ही रासुका लगा दी गई जिसके कारण उनको रिहा नहीं किया गया।

यहां पर कुछ लोगों ने रासुका लगाए जाने पर प्रश्न किया। उत्तर प्रदेश की इस कार्यवाही को कई लोग संदेह की नजर से भी देख रहे हैं। यह कार्यवाही सीएए के खिलाफ एएमयू में दिसम्बर में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में हुई थी।

वह अब भी जेल में हैं। क्या अब हम उनका उपयोग कोरोना जैसी महामारी में नहीं कर सकते जबकि उत्तर प्रदेश में यह तेजी से फैल रहा है।

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