BY-निशा सिंह
एक शिशु के जीवन में माता-पिता की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। शिशु के जीवन में माँ की भूमिका सबसे अहम होती है परंतु एक पिता द्वारा किए गए बलिदान की कोई तुलना नहीं हो सकती है। इसी कारण बच्चे की ज़िंदगी में उसके पिता की मौजूदगी भी अनिवार्य है।
एक नवजात शिशु के लिए शुरुआत के कुछ महीने बहुत नाज़ुक और महत्वपूर्ण होते हैं। उस समय उसे बहुत ध्यान और देखभाल की ज़रूरत होती है और नयी माताओं को पिता की सहायता की आवश्यकता होती है।
इसीलिए अब विभिन्न क्षेत्रों मे काम करनेवाले नवजात शिशुओं के पिताओं के लिए पितृत्व अवकाश की माँग हो रही है। किंतु समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो एक पिता की भूमिका को समझने में असमर्थ है और प्रश्न करता है कि “एक पुरुष की बच्चे की देखभाल में क्या भूमिका है”?
पितृत्व अवकाश के अनेक लाभ हैं जैसे की –
१) बच्चे का मानसिक विकास अच्छा होता है।
२) बच्चे के साथ पिता के सम्बंध में वृद्धि होती है।
३) घर में जेंडर इक्विटी स्थापित की जा सकती है।
पहले बिंदु पर प्रकाश डालते हुए हम ये बताना चाहते हैं, माँ बच्चे को जन्म देती है परंतु बच्चे के उच्चतम विकास के लिए पिता की शारीरिक और मानसिक रूप से उपस्तिथि भी अनिवार्य है। उदाहरण के रूप में – स्वीडन में जब दो महीने के पितृत्व विकास को कानूनी रूप में स्वीकारा और लागू किया गया तो तलाक के मामलों के दर में कमी देखने को मिली।
भारत में केंद्र सरकार ने १९९९ में केंद्रीय सिवल सेवा (अवकाश) नियम ५५१ (ए ) के तहत अधिसूचना में एक पुरुष केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के लिए पितृत्व अवकाश के प्रावधान बनाए थे जिसमें दो से कम जीवित बच्चे हों। इसके अनुसार एक पिता को शिशु और उसकी माता की देखभाल करने के लिए १५ दिन की अवधी प्रदान की जाती है।
चिंता का विषय ये भी है की यह अवधि शिशु के जन्म के पूर्व अथवा शिशु जन्म पश्चात के छः महीने के अंतर्गत ली जा सकती है अन्यथा यह अवकाश समाप्त हो जाता है और पिता उसको लेने में असमर्थ हो सकता है।
इसके अतिरिक्त और भी लाभ हैं, जैसे-
• छुट्टी के दौरान पिता को उतना ही वेतन मिलेगा जितना वेतन अवकाश पे जाने के पहले मिलता था।
• यदि बच्चा गोद लिया गया हो तो उस स्तिथि में भी यह नियम लागू किया जाएगा। किंतु निजी कंपनियों में पितृत्व अवकाश की उपलब्धता के लिए सरकार द्वारा किया गया कोई प्रावधान नहीं है।
दूसरे बिन्दू पर ज़ोर डालते हुए – पिता का अपने बच्चे के समक्ष होना उसके उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करता है ।
भारत के संविधान के अनुच्छेद १५ के तहत हम समानता दर्शाते है तो यहाँ लिंग के आधार पर भेद भाव क्यों?
तीसरे बिंदु पर विचार करते हुए – पितृत्व अवकाश घर पर जेंडर इक्विटी को स्थापित करता है। माता-पिता बच्चे की रीढ़ हैंं और उसके आगामी जीवन को ख़ुशियों और देखभाल से भरा बना सकते हैं।
मातृत्व लाभ के बाद २०१७ में महाराष्ट्र के सांसद राजीव सतव के द्वारा लोक सभा में नए पिताओं के लिए पितृत्व लाभ नाम का बिल पेश किया था।
बिल का उद्देश्य यह है कि सभी असंगठित और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को १५ दिन से बढ़ाकर ३ महीने का पितृत्व अवकाश प्रदान किया जाए। ये माता-पिता दोनों के लिए लाभकारी है।
उनके अनुसार “ शिशु की देखभाल माता पिता की संयुक्त ज़िम्मेदारी है। उन्हें शिशु के कल्याण सुनिश्चित करने के लिए उस पर समय समर्पित करना चाहिए।”
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो : ऐन. के. बग़रोड़िया पब्लिक स्कूल – चंदर मोहन जैन एक निजी स्कूल के अध्यापक थे जो दिल्ली के उच्च न्यायालय में अपने पितृत्व अवकाश की अस्वीकृति और वेतन काटने को चुनौती दी ताकि वह अपने पत्नी और बच्चे की देखभाल कर सकें। बिना क़ानून होते हुए भी दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि निजी स्कूलों के अध्यापक और कर्मचारी इस अवकाश के हक़दार हैं।
सरकारी कर्मचारियों के लिए पितृत्व अवकाश को स्वीकृत किया गया है, किंतु निजी क्षेत्रों में काम काम करने वाले कर्मचारियों के लिए कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है। इसीलिए पितृत्व अवकाश व्यक्तिगत कम्पनियों में अभी मिलने में मुश्किलें या रहीं हैं।
कुछ प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने पहले ही अपनी मानव संसाधन नीतियों के माध्यम से पितृत्व अवकाश को लागू करने की दिशा में कदम उठाए हैं। उनमें से कुछ हैं जैसे:
• Microsoft: पितृत्व अवकाश के 12 सप्ताह के लिए।
• इन्फोसिस: पितृत्व अवकाश के 5 दिन के लिए।
• फेसबुक : पितृत्व अवकाश के 17 सप्ताह के लिए।
• स्टारबक्स: पितृत्व अवकाश के 12 सप्ताह के लिए।
• टीसीएस: पितृत्व अवकाश के 15 दिन के लिए।
• ओरेकल: पितृत्व अवकाश के 5 दिन के लिए।
• डेलोइट: 16 सप्ताह का पितृत्व अवकाश।
यह अधिनियम सभी क्षेत्रों जैसे कंपनियों, कल कारख़ाना, खदान आदि पर लागू है।