मूवी की राजनीति बहुत हो चुकी?

BY- PUNIT MISHRA

हम लोग मूवी प्रिय लोग हैं। मूवी के जरिये हम इतिहास जानने की इच्छा रखते हैं। मूवी के जरिये ही हम पारिवारिक रिश्तों को समझने की कोशिश करते हैं, अन्यथा जीवन की आपाधापी में हमारे पास इतनी कहाँ फुरसत है कि हम रिश्तों की संवेदनाओं और उसकी कीमत को समझने की ज़हमत उठाएं।

हम फिल्मों में ही माँ-बाप, भाई-बहन को लेकर भावुक होते हैं अन्यथा रोजमर्रा में तो हम माँ-बाप को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और जमीन-जायदाद के लिए भाइयों पर मुकदमा दर्ज कराने तक से नहीं चूकते। इनकी माने तो भावुकता के चक्कर में फंसकर जीवन के सुखद सूत्रों को तो नहीं छोड़ सकते न!

फिल्मों और धारावाहिकों में कुछ देर के लिए भावुक हो जाना एक अलग बात है पर पूरा जीवन इन पर न्योछावर करना इन जैसों के लिए संभव नहीं। अपने मामलों में स्थितप्रज्ञ से हो जाते हैं।

हमारे साहब का कहना है कि मूवी इतिहास को जानने की आधिकारिक स्रोत होती है। उनका मानना है कि अगर गांधी पर भी एक कायदे की मूवी बन जाती तो हमारे गांधी का भी दुनिया जहान में नाम हो जाता। जैसे कि मंडेला और मार्टिन लूथर किंग को सब जानते हैं। गोया जैसे कि लूथर किंग और मंडेला को सपना आया हो कि एक दूर देश में गांधी नाम का महात्मा रहता है, उसे अपना गुरु बना लो और उसके रास्ते पर चलो।

गोया अपने जमाने का सुपर स्टार, नामी कॉमेडियन चार्ली चैपलिन बिना गांधी पर मूवी बने ही उनका मुरीद हो गया था। कायदे में तो मूवी बन जाने के बाद उनका मुरीद होना था। हालांकि गांधी की मृत्य के बाद गांधी पर एक मूवी भी बनी थी। कोई ताज्जुब नहीं, ये लोग यह बताने के बाद यह भी कह सकते हैं कि गांधी की जो थोड़ी-बहुत लोकप्रियता है वह इसी मूवी की देन रही होगी।

इसी भावना से प्रेरणा लेकर कश्मीर फाइल्स के जरिये कश्मीरी पंडितों के निष्कासन के दर्द के इतिहास को समझने की पैरवी की गई, बगैर यह जाने कि क्या यह मूवी समग्रता में तथ्यों के साथ न्याय करती है या नहीं। बगैर यह जाने कि जिस समय यह विस्थापन हुआ उस समय किसकी सरकार थी और उस सरकार ने तथा उसके सहयोगी दलों ने इस विस्थापन को रोकने में क्या भूमिका अदा की? ऐतिहासिक पात्रों या घटनाओं पर बनी मूवी अधिक सतर्कता की मांग करती हैं, बनिस्बत अन्य विषयों की तुलना में।

ख़ैर, मूवी देखकर लोग बहुत भावुक हुए, खूब नारेबाजी की और इतिहास को समझकर फिर अपने रोजमर्रा के काम पर लग गए। उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि अब उनके लिए क्या प्रयास किये जा रहे हैं?
आज जबकि फिर से कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों ने निशाना बनाना शुरू कर दिया है और विवश हो कश्मीरी पंडितों ने घाटी से सामूहिक पलायन की धमकी दी है।

तो कहना यह है कि अब जबकि मूवी के जरिये इतिहास जान लिया गया हो तो हक़ीक़त को भी समझने की कोशिश की जाए। अब जबकि कश्मीर के प्रशासनिक मामलों पर वर्तमान सरकार द्वारा क्रांतिकारी निर्णय लिए जा चुके हैं। उसको दो भागों में बांटे जाने को अभूतपूर्व साहसिक कदम के रूप में विज्ञापित किया गया है तो फ़िर से घाटी से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की घटनाएं चिंतित करती हैं। उन पर फिर से आफत आई है।

भाई अब कहाँ पर कमी है? अब तो 370 भी हट गया। इसलिए प्रचार की राजनीति से बाहर निकलकर कश्मीरी पंडितों के दुःख-दर्द को गम्भीरता से समझने की कोशिश की जानी चाहिए। अब जो हत्याएँ हों रहीं हैं, आखिर उनकी जवाबदेही किस पर है? मूवी की राजनीति बहुत हो चुकी।

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