मोरबी घटना: जिनकी मौत आयी थी, मरम्मत बेहतर होने से टल सकती थी क्या?

 व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा

मोरबी का झूला पुल टूटने पर शोर मचाने वाले; पुल टूटने के लिए दोषी कौन-दोषी कौन का शोर मचाने वाले; करीब डेढ़ सौ मौतों में भ्रष्टाचार का हाथ बताने वाले; अब बोलें क्या कहते हैं? अब तो अभागे पुल की मरम्मत करने वाली कंपनी के मैनेजर के दर्जे के अधिकारी ने भी ऑफीशियली बता दिया है।

और वह भी अदालत में जो हुआ, हरि इच्छा से हुआ। जो किया, हरि इच्छा ने किया! हो गयी न सब की बोलती बंद? एक्ट ऑफ गॉड में टांग अड़ाने की जुर्रत कौन करेगा, आजादी का अमृतकाल लगने का एनाउंसमेंट नहीं सुना क्या?

अब जबकि हरि-इच्छा बीच में आ चुकी है, डबल इंजन वालों को जांच-वांच में टाइम वेस्ट करने की जरूरत नहीं है। हरि की इच्छा के आगे किसी की कभी चली है क्या? एक्ट ऑफ गॉड को कोई रोक पाया है?

फिर इसका पता लगाने का ही क्या फायदा कि मरम्मत के चार दिन बाद ही पुल कैसे टूट गया, कि घडिय़ां बनाने वाली कंपनी को पुल की मरम्मत का ठेका किसने दिया, कि जिस पुल पर सौ लोगों के चढऩे की इजाजत थी, उस पर टिकट देकर पांच सौ लोगों को कैसे चढ़ जाने दिया, वगैरह, वगैरह। जिनकी मौत आयी थी, मरम्मत बेहतर होने से टल सकती थी क्या? फिर, मरम्मत पर समय और सामग्री की बर्बादी से क्या होता?

और अब जब यह एक्ट ऑफ गॉड का मामला बन चुका है, इसमें भ्रष्टाचार वगैरह खोजना फौरन बंद होना चाहिए। जो एक्ट ऑफ गॉड पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाएगा, सीधे ईश निंदा नहीं, तो संप्रदायों के बीच विद्वेष फैलाने के लिए तो जरूर ही जेल जाएगा।

और केजरीवाल टाइप तो अपना मुंह बंद ही रखें। नोट पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो अगर इकॉनामी को ऊपर उठा सकती है, तो क्या हनूमान के सहारे की कमी मोरबी झूला पुल को नयी-नयी मरम्मत के बाद गिरा नहीं सकती है।

खैर! हम ठहरे विश्व गुरु, ऐसी छोटी-मोटी बाधाओं से रुकने वाले नहीं हैं। रुपए को संभालने के लिए, हमारे पास लक्ष्मी-गणेश हैं। भूख को भगाने के लिए, खुद पीएम जी ने बताया, भजन काम करेेंगे। रोगों को भगाने के लिए, डाक्टर की पर्ची पर श्रीहरि आ ही चुके हैं। चुनाव के लिए मंदिर-कॉरीडोर सब हैं ही। और कितना जड़ों की ओर लौटेंगे, अमृतकाल में! दोबारा बंदर बनने तक किसने कहा!

व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं।

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