नोटबन्दी और फिर जीएसटी के लागू होने के बाद भारत की आर्थिक स्थिति काफी चिंताजनक रूप लेती जा रही थी। अब जब से कोरोना ने दस्तक दी है तब से लोगों की नौकरियां थोक के भाव जाने लगी हैं।
वैसे तो मोदी सरकार के पास एक ग्राम स्तर के बूथ कार्यकर्ता का भी डाटा उपलब्ध है। किसी न किसी बीजेपी के व्हाट्सप्प ग्रुप से वह जुड़ा भी हुआ है लेकिन आम लोगों से संबंधित आवश्यक डाटा सरकार के पास नहीं है।
संसद के मानसून सत्र में कृषि बिल को लेकर खूब हंगामा देखने को मिला लेकिन ऑटोमोबाइल सेक्टर में खत्म हुईं नौकरियों के मुद्दे पर पूरी तरह से शांति बनी रही।
इस सेक्टर पर बात इसलिए होनी चाहिये थी क्योंकि इसमें काम करने वाले लाखों लोगों की नौकरी पिछले कुछ महीनों में हाँथ से चली गई। लाखों के पैकेज वाले लोग अब रोड़ पर आ गए हैं।
जब भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय से सवाल किया गया कि क्या कोरोना के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर की लाखों नौकरियां चली गईं? इसपर जो जवाब मंत्री जी द्वारा दिया गया वह हैरान करने वाला था।
मंत्रालय ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। मंत्रालय ने कहा कि उसके पास ऑटोमोबाइल सेक्टरों में हुए जॉब लॉस से जुड़ा कोई आंकड़ा नहीं है।
यही नहीं मंत्रालय से राज्यानुसार आंकड़े भी मांगे गए साथ ही यह भी पूछा गया कि वह बेरोजगार हुए लोगों को नौकरियां कैसे देगी? इसपर भी मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सरकार आंकड़े नहीं दे रही है। इससे पहले किसानों की आत्महत्या से संबंधित डाटा को कई साल तक रोक दिया गया था, जिसे अब जारी किया गया है।
अभी हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बताया था कि उनके पास कोरोना के कारण जिंदगी गवाने वाले स्वस्थ्य कर्मचारियों का डाटा नहीं है।
मोदी सरकार के पास यह डाटा भी नहीं है कि लॉकडाउन के बाद कितने प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है। कुल मिलाकर कई ऐसे आंकड़े हैं जो मोदी सरकार या तो बताना नहीं चाहती या फिर जानबूझकर नहीं बता रही है?