पिछले दो महीने में देश में काफी कुछ बदलाव आया है। लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है जिनकी थी उनकी चली गई है। लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर लगा है। सरकार जो परीक्षा करवा चुकी है उसका परिणाम नहीं दे पा रही है।
बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश, जम्मू से लेकर केरल तक छात्रों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रखा है। सोशल मीडिया पर छात्र व शिक्षक खुलकर लिख रहे हैं। ट्वीटर पर काफी ट्रेंड चलाने के पश्चात मोदी सरकार थोड़ी जागी और आश्वासन की बात कहकर आगे बढ़ गई।
मोदी सरकार तो नींद थोड़ा उठी है लेकिन गोदी मीडिया अभी भी सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम, पाकिस्तान, सुशांत, रिया और कंगना पर रुकी हुई है। इस गोदी मीडिया को देश की अन्य कोई समस्या नहीं दिखती।
कुछ पत्रकारों को छोड़कर सभी बस रिया, सुशांत और कंगना की धुन लगाए बैठे हैं। वह रोजाना इसी मुद्दे पर घंटों बहस करते हैं। चैनल पर चिल्लाने और शांत कराने के अलावा और कुछ नहीं दिखता।
टीआरपी की होड़ ने बिकी हुई मीडिया की विश्वसनीयता को और कम कर दिया है। अभी गोदी मीडिया यह ही नहीं तय कर पा रही है कि कौन सबसे आगे है।
कभी रिपब्लिक के अर्णव अपने चैनल को सबसे ज्यादा चलने वाला बता देते हैं तो कभी आजतक की मॉडल एंकर अंजना ओम कश्यप अपने चैनल को। यही लोग मीडिया ट्रायल के जरिये रिया को गुनाहगार साबित करने पर तुले हुए हैं।
पिछले दो महीने से न तो किसान की बात हो रही है न मजदूर की। किसान अपनी फसल को लेकर परेशान है तो मजदूर दिहाड़ी को लेकर।
कोरोना के मामले रोज लगभग 1 लाख निकल रहे हैं लेकिन इन गोदी पत्रकारों को वह भी नहीं दिखता। पहले 100 भी जब नहीं निकल रहे थे तब चीख-चीख कर जमातियों को इसके लिए जिम्मेदार बताते थे।
दो करोड़ नौकरी देने की बात कहने वाले प्रधानमंत्री ने पिछले छह साल में कई लाख लोगों की नौकरी छीन ली। नौकरी के जाने के बाद कई लोगों ने आत्महत्याओं भी कर ली।
हर रोज कई नौजवान बेरोजगारी के कारण आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन गोदी मीडिया इसपर मुंह बंद कर लेती है। वह सिर्फ उन मुद्दों पर बात करती है जो देश के मूल मुद्दे या समस्याएं हैं ही नहीं।
हमारे देश की जीडीपी माइनस 23 डिग्री से भी नीचे चली गई लेकिन गोदी मीडिया को कंगना का वह ऑफिस नजर आता है ओ अवैध तरीके से बनाया गया है। यह पत्रकारिता का एक नया दौर शुरू हो गया है जो पूरी तरह से जनता के मुद्दों से कोषों दूर है।
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